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संसद में 8वीं बार नामंजूर हुआ AAP का कृषि कानूनों के खिलाफ ‘काम रोको’ प्रस्ताव

आप की पंजाब इकाई के अध्यक्ष एवं सांसद भगवंत मान ने कहा कि रिकार्ड आठवीं बार संसद में कृषि कानूनों पर बहस कराने के लिए पेश ‘काम रोको’ प्रस्ताव को जानबूझ कर नामंजूर किया है।

संसद में कृषि कानूनों समेत कई मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के कारण मानसून सत्र की कार्रवाई एक दिन भी सुचारु रूप से नहीं चल पाई है। लगातार सदन में कृषि कानूनों को लेकर बहस की मांग कर रही आम आदमी पार्टी (आप) ने आठवीं बार ‘काम रोको’ प्रस्ताव पेश किया, जिसे संसद ने फिर से नामंजूर कर दिया। आप का आरोप है कि केंद्र इस मुद्दे पर बहस से भाग रही है।
आप की पंजाब इकाई के अध्यक्ष एवं सांसद भगवंत मान ने गुरुवार को कहा कि रिकार्ड आठवीं बार संसद में कृषि कानूनों पर बहस कराने के लिए पेश काम रोको प्रस्ताव को जानबूझ कर नामंजूर किया है। सरकार ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि चर्चा कराए जाने पर देश के लोगों को तीन कृषि कानूनों में छिपे इस सच का पता लग जायेगा कि किस तरह मोदी सरकार देश की जमीन और अनाज कारपोरेटरों के हवाले कर रही है।
भगवत मान ने आज फिर किसानों की आवाज को संसद में लगातार आठवीं बार उठाते हुए काम रोको प्रस्ताव पेश किया और कहा कि संसद के दोनों सदनों में ‘आप’ द्वारा कृषि बिलों के बारे में बहस करवाने की बात जोर शोर से उठाई जाती है, लेकिन मोदी सरकार कृषि कानूनों पर न कुछ बोल रही है और न कुछ सुन रही। बल्कि संसद में हंगामे के दौरान अन्य बिल पास करके राज्यों और लोगों के हकों को मार रही है।
आप सांसद ने कहा कि मोदी सरकार बिजली संशोधन बिल 2021’ संसद में लाकर किसानों, मजदूरों और राज्यों पर डाका मारने की तैयारी कर रही है। बिजली संशोधन बिल के पास होने से राज्यों को भिखारी बनाया जायेगा, क्योंकि पहले ही जी.एस.टी प्रणाली लागू करके राज्यों को केंद्र से पैसे मांगने वाले भिखारी बना दिया है। इस तरह बिजली संशोधन बिल के जरिए राज्यों से बिजली छीन कर बाद में राज्यों को बिजली के लिए भिखारी बना दिया जाएगा।
उन्होंने कहा केंद्र सरकार जैसे राज्यों से जमीन और बिजली जबरन छीन रही है, उससे देश का संघीय ढांचा ही खत्म हो जाएगा और सत्ता का केंद्रीकरण होने से तानाशाही बढ़गी। अमरीका जैसे देश में भी लोगों की आवाज सुनी जाती है लेकिन विश्व के बड़े प्रजातांत्रिक देश की सरकार न तो सड़कों पर बैठे किसानों को देख रही है और न ही संसद में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों की आवाज सुन रही है।

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