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आखिरकार जिंदगी की जंग हार गया फरहान

वेंटिलेंटर की सुविधा पाने के लिए हाईकोर्ट तक जाने वाला फरहान आखिरकार जिंदगी की जंग हार गया। तीन साल का फरहान 24 जनवरी को लोक नायक अस्पताल आया था।

नई दिल्ली : वेंटिलेंटर की सुविधा पाने के लिए हाईकोर्ट तक जाने वाला फरहान आखिरकार जिंदगी की जंग हार गया। तीन साल का फरहान 24 जनवरी को लोक नायक अस्पताल आया था। यहां जांच के दौरान उसकी हालत नाजुक बनी रही लेकिन उसे सात दिनों तक उसे अंबू बैग के सहारे जीना पड़ा। हालत यह हुई कि वेंटिलेंटर की सुविधा पाने के लिए उसे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

करीब नौ दिनों बाद एक फरवरी को फरहान को वेंटिलेटर की सुविधा मिली, लेकिन लापरवाही के चलते बच्चे में इंफेक्शन बढ़ता रहा और आखिरकार रविवार सुबह उसने दम तोड़ दिया। बच्चे के परिजन का आरोप है कि यदि पहले दिन से अस्पताल प्रशासन से लापरवाही न बरती होती तो फरहान आज जिंदा होता।

फरहान के पिता अशफाक का कहना है कि बच्चे के उपचार के लिए काफी दिनों तक प्रयास करते रहे लेकिन अस्पताल प्रशासन ने हमारी सुनवाई नहीं की। अस्पताल वाले उसे ब्रेन डेड बताते रहे। उन्होंने कहा कि यदि बच्चे का सही से उपचार किया गया होता तो वह ठीक हो सकता था।

वहीं पिता के साथ आए अन्य परिजनों ने बताया कि बच्चे को बचाने के लिए माता-पिता दोनों दिन रात अंबू बैग से सांस देते रहे। इस दौरान ही यदि उसे वेंटिलेंटर की सुविधा मिल जाती तो वह आसानी से ठीक हो सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार बेहतर सुविधा देने का दावा करती है लेकिन यहां बच्चे को बेहतर उपचार तक नहीं मिला।

बच्चे को बचाना था मुश्किल
लोकनायक अस्पताल के डाक्टरों ने बताया कि बच्चा का ब्रेन डैड हो चुका था, उसे बचाने का प्रयास मुश्किल था। परिजनों को इस संबंध में पहले ही बता दिया गया था। ऐसे में बच्चे के उपचार में लापरवाही का आरोप गलत है। उन्होंने कहा कि अस्पताल हर व्यक्ति को जरूरत के आधार पर बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा है। रही बात वेंटिलेटर की तो उसकी संख्या सीमित है। उन्होंने कहा कि बच्चे के शरीर के ऑर्गन्स ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया था।

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