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वेतन में भेदभाव को लेकर अनुबंध पर काम कर रहे एम्स के संकाय सदस्यों ने हर्षवर्द्धन को पत्र लिखा

देश के सबसे अग्रणी चिकित्सा संस्थान में अनुबंध पर सहायक प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहे 52 संकाय सदस्यों ने कहा कि उनके काम का बोझ स्थायी संकाय सदस्यों के बराबर है

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अनुबंध के आधार पर काम कर रहे संकाय सदस्यों के एक समूह ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि वेतन के मामले में उनके साथ भेदभाव हो रहा है। उन्होंने मांग की है कि उनका वेतन स्थायी संकाय सदस्यों के बराबर किया जाए। 
देश के सबसे अग्रणी चिकित्सा संस्थान में अनुबंध पर सहायक प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहे 52 संकाय सदस्यों ने कहा कि उनके काम का बोझ स्थायी संकाय सदस्यों के बराबर है, लेकिन उनका वेतन रेसीडेंट डॉक्टरों से ‘काफी कम’ है, जिन्होंने उनके अधीन प्रशिक्षण हासिल किया है। उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह का भेदभाव सिर्फ युवा और प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को भविष्य में संस्थान में कार्य करने से रोकेगा।’’ 
उन्होंने कहा कि मंत्री ‘‘इस बात से सहमत होंगे कि समान काम के लिये समान वेतन मिलना चाहिये।’’ उन्होंने कहा कि इस कथित भेदभाव की वजह से युवा और होनहार उम्मीदवार एम्स में नियुक्ति के लिए नहीं कर रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों से कई संविदा संकाय सदस्यों की सीटें खाली हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को अपने परिवार की भी देखभाल करनी होती है, जो इस वेतन पर दिल्ली जैसे महानगर में काफी मुश्किल हो जाता है और वे पिछले एक वर्ष से मंत्रालय को पत्र लिख रहे हैं, लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। 
उन्होंने पत्र में कहा, ‘‘हमें डर है कि इस तरह की अनिच्छा से सिर्फ संभावित मेधावी उम्मीदवार संस्थान की जगह निजी क्षेत्र में जाएंगे। खुद चिकित्सक होने के नाते, हम उम्मीद करते हैं कि आप मुद्दे को समझेंगे और इस संबंध में ठोस फैसला करेंगे।’’ पत्र में कहा गया है कि केंद्रीय संस्थान के निकाय में पिछले साल इसे पहले ही मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन अब तक अनुकूल नतीजा नहीं आया है। 

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