पश्चिमी दिल्ली : एक बार फिर राजधानी की आबोहवा जहरीली हो गई है। साथ ही दिल्ली में कूड़ा जलाने पर सरकार की सख्ती भी हवा-हवाई दिख रही है। हर साल ठंड का मौसम आते ही दिल्ली गैस चेम्बर में तब्दील हो जाती है। बावजूद सिविक एजेंसियां और दिल्ली सरकार की नींद इस मसले पर अंत में जाकर खुलती है। राजधानी के अलग-अलग इलाकों में खाली पड़ी जमीन व सड़क किनारे खुलेआम कूड़े को जलाया जा रहा है। कूड़े में मौजूद पॉलीथिन व प्लास्टिक जलने से आबोहवा को और भी जहरीला कर रही है। रविवार को जब लोग द्वारका मोड़ स्थित नजफगढ़ नाले की तरफ से गुजर रहे थे तभी कुछ लोगों के आंखों में जलन होने लगी।
यही नहीं उन्हें सांस लेने में भी बहुत दिक्कत आने लगी। जैसे-तैसे लोग वहां से दूर भागे और राहत की सांस ली। ऐसे में दिल्ली सरकार और सिविक एजेंसियों को आगे आकर कूड़ा वेस्ट को जलाने से रोकना होगा। साथ ही लोगों को जागरूकता करने के लिए सरकार को सामने आना चाहिए। राजधानी में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए कुछ सरकारी संस्थान और सामाजिक संस्थाओं ने जरूर इस दिशा में पहल की है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जीपीएस डबास बताते हैं कि इन दिनों किसान गेंहू फसल की कटाई करते हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण की चपेट में दिल्ली
अधिक खेती करने वाले किसान गेंहू की फसल कटवाने में मशीन का उपयोग करते हैं। इसके बाद किसान खेतों में बचे पराली को आग के हवाले कर देते हैं। खासकर दिल्ली और आसपास के किसान ऐसा करते हैं। ऐसे करने से प्रदूषण का लेवल तो बढ़ता ही है साथ ही उस खेत की उर्वरता भी कम होती है। ऐसे में पूसा किसानों को जागरूक करने के लिए देशभर में हर साल जागरूकता अभियान चलाती है।