पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार एवं पूर्व आईपीएस अधिकारी भारती घोष ने उनके खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगाने और प्राथमिकी रद्द कराने के लिए सोमवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
भाजपा ने पिछले हफ्ते घोष को पश्चिम मेदिनीपुर जिले की डेबरा सीट पर तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी हुमायूं कबीर के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था। कबीर भी भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी रह चुके हैं। न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति के. एम. जोसफ की पीठ ने इस मामले को मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
घोष ने अधिवक्ता समीर कुमार के मार्फत दायर अपनी अर्जी में कहा है कि 19 फरवरी 2019 को उनके (घोष के) खिलाफ दर्ज सिलसिलेवार झूठे मामलों में शीर्ष न्यायालय ने उन्हें किसी तरह की कठोर कार्रवाई से राहत प्रदान की थी, इसके बावजूद भी उन्हें नये मामलों में फंसाया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की प्राथमिकी को यथासंभव लंबे समय तक गुप्त रखा जाता है और याचिकाकर्ता को प्रताड़ित करने के लिए अचानक ही उसे सामने ला दिया जाता है ताकि वह हर समय अदालती कार्यवाही में फंसी रहे और उन्हें अपना राजनीतिक करियर बनाने से रोका जा सके।’’
उन्होंने केशपुर पुलिस थाने में दर्ज एक प्राथमिकी का ब्योरा दिया। यह मामला 12 मई 2019 को संसदीय चुनाव के दौरान दर्ज किया गया था। घोष ने कहा कि वह पिछले लोकसभा चुनाव में घाटल संसदीय सीट से भाजपा की उम्मीदवार थी। उन्होंने आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने उन पर हर मतदान केंद्र पर हमला किया और पुलिस मूकदर्शक बनी रही।
उन्होंने कहा कि केशपुर प्राथमिकी को हाल के समय तक पुलिस की वेबसाइट पर नहीं डाला गया था और उनके पास सीआरपीसी की धारा 75 के तहत गिरफ्तारी का एक वारंट आने तक इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। कभी राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की करीबी माने जाने वाली घोष ने दावा किया कि पुलिस ने उनके खिलाफ एक दर्जन से अधिक प्राथमिकी दर्ज की है।
गौरतलब है कि एक अक्टूबर 2018 को उच्चतम न्यायालय ने उन्हें कथित वसूली और सोना के लिए प्रतिबंधित नोट अवैध तरीके से बदलने को लेकर गिरफ्तारी से राहत प्रदान की थी। घोष, चार फरवरी 2019 को भाजपा में शामिल हुई थीं। वह छह साल से अधिक समय तक पश्चिम मेदिनीपुर में पुलिस अधीक्षक रही थीं।