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कुपोषण से बच्ची की मौत, पिता और दादी को छह महीने की कैद

पिता से अलग हुई उसकी मां को भी झाड़ लगाई, लेकिन उसे यह कहते हुए कोई सजा नहीं सुनाई कि पुलिस ने ठीक से जांच नहीं की है।

राजधानी की एक अदालत ने कुपोषण की वजह से मृत्यु की शिकार हुई एक बच्ची के पिता और दादी को छह महीने कैद की सजा सुनाते हुए कहा कि केवल ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ नारे से बच्चियों की जान नहीं बच सकती है। अदालत ने दोनों को बच्ची की उचित देखभाल न करने के जुर्म में सजा सुनाई। 
इसने कहा कि दो साल की बच्ची की देखभाल की सारी जिम्मेदारी दोनों दोषियों की थी। वैवाहिक विवाद के बाद बच्ची का संरक्षण उसके पिता और दादी के पास था। 19 फरवरी 2014 को बच्ची अचानक बेहोश हो गई और उसकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पता चला कि बच्ची बुरी तरह कुपोषित थी और दो महीने में उसका वजन सामान्य से घटकर काफी कम हो गया। 
बच्ची की जब मौत हुई तो उस समय उसका वजन महज पांच किलोग्राम था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गुरदीप सिंह सैनी ने कहा कि यह उल्लेख करना आवश्यक है कि बच्चियों की उचित देखरेख में अनदेखी लगातार जारी है। न सिर्फ माता-पिता, बल्कि समूचा समाज उन्हें बचाने में विफल रहा है। 
उन्होंने कहा कि इस मामले में तब बेशर्मी की हद पार हो गई जब एक पड़ोसी यह गवाही देने के लिए आ गया कि दोषियों ने बच्ची को खूब प्यार दिया और उचित देखरेख की। अदालत ने कहा कि सिर्फ ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ नारे से बच्चियों की जान नहीं बचाई जा सकती। 
अदालत ने बच्ची के पिता और दादी दोनों को बाल न्याय कानून की धारा 23 (बच्चे पर क्रूरता) के तहत दोषी ठहराया। इसने कहा कि मौत से दो महीने पहले बच्ची अपनी दादी उषा और पिता दीपक पांचाल के संरक्षण में थी। इसने कहा कि बच्ची का संरक्षण लेने के बाद दोषी उसे एक बार भी डॉक्टर के पास तक लेकर नहीं गए। 
अदालत ने बच्ची के पिता से अलग हुई उसकी मां को भी झाड़ लगाई, लेकिन उसे यह कहते हुए कोई सजा नहीं सुनाई कि पुलिस ने ठीक से जांच नहीं की है। 
इसने बच्ची की मां को झाड़ लगाते हुए कहा कि यद्यपि वह मुआवजे की हकदार है, लेकिन उसे कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा क्योंकि उसने बच्ची की मौत के बाद भी उसके प्रति कोई प्यार नहीं जताया। न तो वह बच्ची का अंतिम संस्कार करने के लिए खुद आगे आई और न ही बच्ची के अंतिम संस्कार में शामिल हुई। 
अदालत ने बच्ची की मां की याचिका पर कहा कि हालांकि वह मुआवजे की हकदार है, लेकिन उसे कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा क्योंकि वह खुद अपनी बेटी की उचित देखरेख न करने की दोषी है। क्योंकि पुलिस ने ठीक से जांच नहीं की है, इसलिए उसे आरोपमुक्त किया जा रहा है। 
अभियोजन पक्ष के अनुसार बच्ची की मां रजनी ने वर्ष 2013 में अपने पति पांचाल के खिलाफ भादंसं की धारा 498 ए के तहत मामला दायर किया था। बाद में अदालत में दोनों में समझौता हो गया था, लेकिन फिर भी उन्होंने अलग रहना शुरू कर दिया था। 

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