नई दिल्ली : पूर्वी दिल्ली के एम्स कहे जाने वाले गुरु तेगबहादुर (जीटीबी) अस्पताल में दिल्ली के मरीजों के आरक्षण की वजह से पूर्वी दिल्ली नगर निगम के सबसे बड़े महर्षि दयानंद अस्पताल में मरीजों का बोझ डेढ़ गुणा हो गया है। इसकी वजह से पहले से ही कर्मचारियों की भयंकर कमी का समाना कर रहे इस अस्पताल में हालात तेजी से बेकाबू होते जा रहे हैं। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि इस स्थिति का अनुमान पहले ही लगाकर नगर निगम को आगाह कर दिया गया था, लेकिन नगर निगम द्वारा इस पर संज्ञान नहीं लेने की वजह से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 370 बिस्तरों के इस अस्पताल में करीब 150 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन करीब 40 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं। वहीं लगातार महीनों से वेतन नहीं मिलने की वजह से कोई भी डॉक्टर यहां आना नहीं चाहता। एक अक्तूबर से पहले यहां रोजाना औसतन दो हजार मरीज ओपीडी की सुविधा लेने आते थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर करीब तीन हजार से भी ज्यादा की हो गई है। सबसे ज्यादा प्रसूति विभाग में हालात खराब हैं। यहां एक बेड पर चार-चार मरीजों को रखा गया है। महज छह ओटी टेबल होने पर भी एक दिन में 37 डिलीवरी करानी पड़ रही है।
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लेकिन मरीजों को रेफर नहीं करने के नियम की वजह से इसके बाद भी वह किसी मरीज को मना नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में कभी भी कोई अप्रिय घटना घट सकती है। अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. रागिनी खेडवाल बताती हैं कि जीटीबी द्वारा सितंबर महीने में इसकी घोषणा के साथ ही उन्होंने स्थिति के अंदेशे की जानकारी पूर्वी दिल्ली नगर निगम के आला अधिकारियों को देते हुए गाइडलाइन की मांग की थी, लेकिन आजतक नगर निगम की तरफ से कोई गाइडलाइन नहीं आया है।