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दिल्ली: 2022 के MCD चुनाव कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई, अंदरुनी कलह समेत इन चुनौतियों से करना होगा सामना

कांग्रेस 2022 के दिल्ली नगर निकाय चुनाव में अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ेगी। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल कुमार ने कहा, कांग्रेस आज भी अपनी विचारधारा के साथ खड़ी है।

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अंदरुनी तौर पर अपनों से ही लड़ रही है। ऐसे में आगमाी चुनौतियां उसकी लिए काफी मुश्किल होगा। तो वहीं, चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों में सबसे ज्यादा वोट शेयर हासिल करने वाली कांग्रेस 2022 के दिल्ली नगर निकाय चुनाव में अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ेगी। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल कुमार ने कहा, कांग्रेस आज भी अपनी विचारधारा के साथ खड़ी है। मुकाबले में एक जीतता है, तो दूसरा हारता है।  
कांग्रेस ने महामारी के दौरान लोगों की मदद की है 
इस आधार पर पार्टी कमजोर है, लेकिन विचारधारा के आधार पर कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी है। मुझे अपनी विचारधारा, नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओंपर भरोसा है। कांग्रेस ने महामारी के दौरान लोगों की मदद की है। हार का सामना करने के बावजूद लोगों की मदद करना .. हम अपनी पार्टी के दिग्गजों के एजेंडे पर काम कर रहे हैं और 2022 न केवल हमारे लिए बल्कि दिल्लीवासियों के लिए भी अच्छा होगा।  
चंडीगढ़ नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस को बढ़त  
उन्होंने कहा, अगर हम वोट शेयर की बात करें तो चंडीगढ़ नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस पहले नंबर पर है। कांग्रेस को 29.79 फीसदी, बीजेपी को 29.30 फीसदी और आप को 27.08 फीसदी वोट मिले हैं। इस बार कांग्रेस को 8 सीटें मिली हैं, जबकि 2016 के नगर निगम चुनाव में उसे चार सीटें मिली थीं, हालांकि तब निगम के पास 35 की जगह 26 सीटें हुआ करती थीं। 2017 के दिल्ली नगर निगम चुनावों में, भाजपा को सबसे अधिक वोट मिले थे- पूर्वी दिल्ली में 38.59 प्रतिशत वोट, उत्तरी दिल्ली में 35.96 प्रतिशत और दक्षिणी दिल्ली में 35.88 प्रतिशत वोट मिले।  
‘आप’ को सबसे ज्यादा 27.98 फीसदी वोट मिले 
आप को उत्तरी दिल्ली नगर निगम में सबसे ज्यादा 27.98 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, पूर्वी दिल्ली में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 22.74 फीसदी वोट मिले थे। दिल्ली कांग्रेस मीडिया कमेटी के अध्यक्ष अनिल भारद्वाज ने कहा, 2022 बदलाव का साल होगा, क्योंकि दिल्ली के लोगों को केवल झूठे वादे, महंगाई, बेरोजगारी और बीमारी मिली है। दिल्ली एक ऐसी जगह है, जो सैकड़ों किलोमीटर दूर से आने वाले लोगों को रोजगार देती है। 
उन्होंने कहा, शीला दीक्षित जी के कार्यकाल में जो विकास हुआ वह रुक गया है। लोगों ने देखा है कि पिछले 15 साल में निगम भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है। भारद्वाज ने पूछा, पिछली बार बीजेपी ने प्रत्याशी बदले थे। अगर वे अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे, तो बदलाव की क्या जरूरत थी? उन्होंने आगे कहा, कांग्रेस ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन यह मजबूत होकर उभरी है। कांग्रेस नगर निगम चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करेगी, क्योंकि लोग भाजपा और आप से थक चुके हैं।
भाजपा ने 181 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत  
2017 के नगर निगम चुनावों में, भाजपा ने 181 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया था, आप 48 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर थी, कांग्रेस 30 जबकि अन्य 11 पर थे। दिल्ली कांग्रेस की स्थिति के बारे में बात करते हुए, पूर्व मंत्री डॉ किरण वालिया ने कहा, मैं दिल्ली की दुर्दशा को देखकर दुखी हूं। आप और भाजपा प्रचार करने में माहिर हैं। मैंने शीला दीक्षित सरकार में घनिष्ठ समन्वय में काम किया है।  
कई विधायक नए स्कूल खोलने के दौरान प्रचार करना चाहते थे, लेकिन शीला जी ने कहा कि जब तक तीन स्कूल नहीं बन जाते, तब तक प्रचार नहीं होगा। वह अतिरिक्त खर्च नहीं चाहती थीं। मेट्रो और बसें नहीं होतीं, तो दिल्ली का क्या होता? इससे पहले, दिल्ली नगर निगम उपचुनाव में, पांच वाडरें में से, आप ने चार पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने एक पर जीत हासिल की।  
कांग्रेस को उपचुनावों में मिली बड़ी सफलता 
लेकिन कांग्रेस नेताओं ने कहा कि चूंकि उपचुनावों में पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा है, इसलिए नगर निगम चुनाव में इसका फायदा मिलने की संभावना है। जैसे-जैसे नगर निगम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, पार्षदों ने भी दल-बदल करना शुरू कर दिया है। हाल ही में कांग्रेस को तब बड़ा झटका लगा, जब उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) में पार्टी पार्षद मुकेश गोयल आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। यह केवल कांग्रेस पार्षद ही नहीं हैं, जो अन्य दलों में शामिल हो गए हैं, आप के कुछ पार्षद भी कांग्रेस में चले गए हैं। 
2012 में, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को तीन में विभाजित किया गया था – उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी), दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी)। इस कवायद के बाद, 2012 के नगर निगम के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली। 272 सीटों में से बीजेपी को 138, कांग्रेस को 77, बसपा को 13, जबकि अन्य को 41 सीटें मिली थीं।

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