दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि इस साल की गणतंत्र दिवस हिंसा और पिछले साल के दंगों से जुड़े मामलों में पुलिस द्वारा चुने गए वकीलों को उपराज्यपाल द्वारा विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) नियुक्त करने से जांच एजेंसी और अभियोजन के बीच “कोई अंतर” नहीं रह जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में अभियोजक अदालत के अधिकारी होते हैं लेकिन इस समय अभियोजकों और पुलिस के बीच पूरा तालमेल है।
आज समूची दंड प्रक्रिया में किस तरह की निष्पक्षता रह गई है?
अदालत इन नियुक्तियों को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा, ‘‘पुलिस और अभियोजन में आज कोई अंतर नहीं है।’’ उन्होंने सवाल किया कि आज समूची दंड प्रक्रिया में किस तरह की निष्पक्षता रह गई है?
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उन्होंने कहा कि अभियोजकों की नियुक्ति सरकार के अधिकार क्षेत्र में है और उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह मानने के लिए बाध्य हैं। दिल्ली सरकार की ओर से ही वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मामला बहुत जरूरी था, लेकिन प्रतिवादियों – उपराज्यपाल और केंद्र – ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
दिल्ली दंगों और 26 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया
पीठ ने प्रतिवादियों को अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया और मामले को 28 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। दिल्ली सरकार ने इस साल 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली और फरवरी 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामलों में हिंसा से संबंधित मामलों में पेश होने और अभियोजन चलाने के लिए दिल्ली पुलिस के चुने हुए वकीलों को विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करने के उपराज्यपाल के 23 जुलाई के आदेश को चुनौती दी है। सरकार ने दलील दी है कि इससे हितों का गंभीर टकराव होता है।