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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादे पर फैसला लेने के लिए दिल्ली HC ने सरकार को दिया 2 हफ्ते का समय

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को मुख्यमंत्री केजरीवाल की उस घोषणा को लागू करने पर फैसला करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उस घोषणा को लागू करने पर फैसला करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई गरीब किरायेदार कोविड-19 महामारी के दौरान किराया देने में असमर्थ है, तो सरकार इसका भुगतान करेगी। दिल्ली सरकार के वकील गौतम नारायण ने न्यायमूर्ति रेखा पल्ली से कहा कि ”मामला विचाराधीन है।” उन्होंने इस संबंध में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिये 2 सप्ताह का समय मांगा। 
दरअसल, अदालत ने दिल्ली सरकार को इस मामले पर छह सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश दिया था, लेकिन सरकार आदेश पर अमल नहीं कर पाई। इसके बाद इस संबंध में सरकार पर जानबूझकर अदालत की अवमानना का आरोप लगाते हुए एक याचिका दाखिल की गई, जिसपर न्यायमूर्ति पल्ली सुनवाई कर रही थीं। अदालत ने 22 जून को फैसला सुनाया था कि मुख्यमंत्री के इस वादे पर अमल किया जाना चाहिये। उसने आम आदमी पार्टी सरकार को केजरीवाल की घोषणा पर छह सप्ताह के भीतर फैसला करने का निर्देश दिया था।
दैनिक वेतन भोगी और श्रमिक होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ताओं ने पिछले साल 29 मार्च को संवाददाता सम्मेलन के दौरान केजरीवाल द्वारा किए गए वादे को लागू करने की मांग की है। अधिवक्ता गौरव जैन के माध्यम से दाखिल की गई याचिका में कहा गया है, “6 सप्ताह की समयसीमा 02.09.2021 को समाप्त हो गई। लेकिन, दिल्ली सरकार ने अभी तक उपरोक्त निर्देश का पालन नहीं किया है। नजमा (याचिकाकर्ता-1), करण सिंह (याचिकाकर्ता-4), रेहाना बीबी (याचिकाकर्ता-5) के 29.08.2021 और 30.08.2021 के अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया गया।” याचिका में कहा गया है कि जब तक कोई निर्णय नहीं लिया जाता है, तब तक किराए के भुगतान पर ”स्पष्ट नीति” नहीं बनाई जा सकती।
याचिका के अनुसार, ”प्रतिवादी ने जानबूझकर अदालत के आदेश/निर्देश का पालन न करके अवमानना भी की है।” अदालत ने 89 पृष्ठों के निर्णय में कहा था, “महामारी और प्रवासी मजदूरों के बड़े पैमाने पर पलायन के कारण घोषित तालाबंदी की पृष्ठभूमि में जानबूझकर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए गए एक बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार को उचित शासन के लिए मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए आश्वासन पर निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, उसपर नाकामी जाहिर नहीं की जा सकती।” मामले पर अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी।

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