2018 में तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से कथित मारपीट के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को रहत प्रदान की है। हाई कोर्ट ने गवाह का बयान देने की केजरीवाल-सिसोदिया की मांग को खारिज करने के सेशन कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस तय नहीं कर सकती कि किस सबूत को रिकॉर्ड में लाया जाए।
न्यायमूर्ति सुरेश ललित ने सेशन कोर्ट को निर्देश दिया कि वह मामले में आदेश पारित करते वक्त 21 फरवरी 2018 को दिए गए बयान पर विचार करे। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच एजेंसी की प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह मामले की स्वतंत्र और पारदर्शी जांच करे और इसके बाद जमा सभी सबूत ‘बिना चुने स्वीकार करने की नीति’ के तहत कोर्ट के संज्ञान में लाए।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘‘ जांच एजेंसी को सबूतों का मूल्यांकन करने का अधिकार नहीं है, यह कोर्ट का कार्यक्षेत्र है। इसलिए इस सबंध में 24 जुलाई 2019 के आदेश को रद्द किया जाता है।’’ कोर्ट ने कहा, ‘‘ इसके साथ ही सेशन कोर्ट को निर्देश दिया जाता है कि वह मामले में आदेश पारित करते समय 21 फरवरी 2018 को वीके जैन (गवाह) के बयान पर विचार करे जो केस डायरी का हिस्सा है और आरोपी द्वारा रिकॉर्ड पर लाया गया है।’’
केजरीवाल और सिसोदिया ने अधिवक्ता मोहम्मद इरशाद द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया कि अभियोजन पक्ष ने 21 फरवरी 2018 को दर्ज जैन के बयान को वापस ले लिया क्योंकि वह उसके मुताबिक नहीं था जिससे याचिकाकर्ताओं को मामले में फंसाने में मदद मिली।
गौरतलब है कि प्रकाश ने आरोप लगाया है कि 19 फरवरी 2018 को केजरीवाल के आवास सह कार्यालय में बैठक के दौरान उनके साथ मारपीट की गई। बाद में उनका स्थानांतरण कर दिया गया और अब वह दूरसंचार विभाग में अपर सचिव के पद पर कार्यरत हैं।
सेशन कोर्ट ने मारपीट के इस मामले में 25 अक्टूबर 2018 को केजरीवाल, सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के नौ अन्य विधायकों को जमानत दे दी थी। इस मामले में दो अन्य आरोपी और गिरफ्तार हुए विधायक अमानतुल्ला खान और प्रकाश जरीवाल को हाई कोर्ट से जमानत मिली।