जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से देश की राजधानी दिल्ली की अदालत (दिल्ली हाई कोर्ट) ने शुक्रवार को उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें उसके सात केंद्रों में जेआरएफ श्रेणी के अभ्यर्थियों को 100 प्रतिशत पीएचडी सीटें आवंटित करने और गैर-जेआरएफ श्रेणी के अभ्यर्थियों को कोई सीट आवंटित नहीं करने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने जेएनयू स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) की एक याचिका पर विश्वविद्यालय को नोटिस जारी किया और उसे अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि वह केवल गैर-जेआरएफ श्रेणी के अभ्यर्थियों को सीटों के उचित आवंटन का अनुरोध कर रहे है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्षों में, अधिकांश केंद्रों में, पीएचडी सीटों को जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप) अभ्यर्थियों और गैर-जेआरएफ अभ्यर्थियों के बीच प्रवेश परीक्षा के माध्यम से आवंटित किया गया था।
उन्होंने कहा कि 2021-22 में केवल जेआरएफ श्रेणी के माध्यम से सीटें आवंटित की गई हैं। जेएनयू की ओर से केंद्र सरकार की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा ने कहा कि दो-तिहाई सीटें प्रवेश परीक्षा के माध्यम से भरी जा रही हैं और एक तिहाई सीटें जेआरएफ श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित हैं और नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
पीठ ने अरोड़ा को एक हलफनामे के जरिये विश्वविद्यालय का रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया और इस मामले को दो अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
अधिवक्ता उत्कर्ष कुमार के माध्यम से दाखिल जनहित याचिका में कहा गया है कि पिछले वर्षों में जेएनयू के सात केंद्रों में पीएचडी की सीटें जेआरएफ श्रेणी के अभ्यर्थियों के साथ-साथ गैर-जेआरएफ अभ्यर्थियों के लिए प्रवेश परीक्षा दोनों के माध्यम से भरी गई थीं, लेकिन वर्तमान शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में विश्वविद्यालय ने अवैध रूप से, मनमाने ढंग से, असंवैधानिक रूप से अपने ‘ई-प्रोस्पेक्टस’ के माध्यम से सात केंद्रों में जेआरएफ श्रेणी के अभ्यर्थियों के माध्यम से सभी पीएचडी सीटों को भरने का निर्णय लिया।