दिल्ली के निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों में वार्षिक और विकास शुल्क लेने की अनुमति देने का दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) की उस दलील से सहमत नहीं हुई कि उसे गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों द्वारा शुल्क वसूली को विनियमित करने का अधिकार है और शुल्क वसूलने के अनुमति के हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए।
पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से कहा कि हम इस पर रोक लगाने के इच्छुक नहीं है।सिंह ने आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि इससे लाखों अभिभावक प्रभावित होंगे। हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली सरकार हाई कोर्ट की खंडपीठ के समक्ष ये सभी दलीलें रख सकती है, क्योंकि यहां याचिका को गुण-दोष के आधार पर खारिज नहीं किया गया है।
शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि हाई कोर्ट की खंडपीठ 12 जुलाई को मामले पर सुनवाई करने वाली है।न्यायालय ने कहा कि ये सभी दलीलें सरकार वहां रख सकती है, क्योंकि यहां याचिका को गुण-दोष के आधार पर खारिज नहीं किया गया है। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 31 मई को दिल्ली सरकार के डीओई द्वारा जारी अप्रैल और अगस्त 2020 के आदेश को रद्द कर दिया था, जिसके जरिए वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क के संग्रह पर रोक लगायी गयी थी।
इसके बाद शिक्षा निदेशालय ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की जिसमे कहा कि अगर आदेश पर रोक नहीं लगाई जाती है तो बहुत अन्याय होगा क्योंकि सरकार द्वारा ऐसे संस्थानों को 100 प्रतिशत ट्यूशन फी लेने की पहले ही अनुमति दी जा चुकी है। सुनवाई शुरू होने पर निजी स्कूलों के संगठनों की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और एन के कौल ने दिल्ली सरकार की अपील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 31 मई को शीर्ष अदालत के ‘इंडियन स्कूल, जोधपुर बनाम राजस्थान राज्य’ के फैसले का संज्ञान लिया था जिसमें कहा गया था कि स्कूल 15 प्रतिशत की कटौती के साथ वाषिक शुल्क ले सकते हैं और इस मामले में भी यह लागू हुआ।