फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे से जुड़े एक मामले में ‘मुख्य साजिशकर्ताओं’ ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन पर ‘धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा’ डालने के लिए एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया और उसमें लोगों की भागीदारी एवं सभ्य समाज की अधिक स्वीकार्य भागीदारी प्रदान की। पुलिस ने अपने आरोपपत्र में यह आरोप लगाया है।
इस आरोप में 15 व्यक्ति उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगे की ‘पूर्व सुनियोजित साजिश’ का हिस्सा के रूप में नामजद हैं। उसमें कहा गया है कि जामिया समन्वय समिति के सदस्यों के संवाद के स्वर और प्रकृति 24 फरवरी के शाम से बदल गये और वे पीड़ितों की राहत, पुनर्वास और देखभाल की बात करने लगे तथा ‘‘ साथ ही उनके आतंकवादी एवं अवैध कृत्य से हुई जान-माल की क्षति के लिए राज्य, पुलिस एवं सत्तारूढ दल को ठीकरा फोड़ने का ठोस दुष्प्रचार अभियान चलाया जाने लगा। ’’
सोलह सितंबर को अदालत में दाखिल आरोप पत्र में आरोप लगाया गया है, ‘‘ साजिशकर्ताओं ने अपनी चतुराई और आपराधिक सोच से ‘नफरत भरे भाषण’ के मतलब बिल्कुल एक नये आयाम में पेश किया और उस पर राष्ट्रवादी की ‘मीठी परत’ डाल दी गयी तथा इस कटु एवं घिनौने सच को छिपा दिया गया कि वाकई यह भड़काने और अखिल इस्लामिक पहचान पर बल देने की बिल्कुल सोची समझी कोशिश थी।’’
उसमें आरोप लगाया गया है, ‘‘ अपने लक्षित श्रोताओं को भ्रमित रखने के लिए, सीएए के खिलाफ, तथाकथित फासीवाद के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान , दलित और हाशिये पर रहने वाले वर्ग के एकजुटता के प्रदर्शन के दौरान साजिशकर्ताओं की झोली में सभी के लिए कुछ न कुछ था जो इस विश्वास के साथ उनकी बौद्धिक पोटली की ओर ताक रहे थे कि उन्होंने गतिशील भारतीय लोकतंत्र की थाली में अच्छा राजनीतिक विकल्प पेश किया है।’’
उसमें कहा गया है, ‘‘ इसलिए अपनी साझी साजिश, अपने प्रदर्शनों को धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा डालने की स्पष्ट सोच , उसे व्यापक जन भागदारी एवं सभ्य समाज की भागीदारी प्रदान करने तथा महिलाओं एवं बच्चों को पुलिस के सामने आने पर ढाल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए मुख्य साजिशकर्ताओं ने एक ऐसे ग्रुप के सृजन के लिए काम किया जो दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप के नाम से सामने आया। ’’