नई दिल्ली : प्रदेश भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर प्रबंधन समिति 2020 की घोषणा कर दी है। जिसमें विजय गोयल को केवल सभी रचनात्मक कार्यों का संयोजक बनाया गया है। देखने वाली बात यह है कि उन्हें चुनाव प्रबंधन समिति और घोषणा पत्र समिति में स्थान नहीं दिया गया। इन समितियों में तरुण चुघ और डॉ. हर्षवर्धन को जिम्मेदारी सौंपी गई है। जिनसे विजय गोयल कहीं ज्यादा अनुभवी हैं। ऐसा सिर्फ संगठन ने उनकी हरकतों को देखते हुए किया है।
इसका सीधा सा मतलब राजनीतिक गलियारे में यह भी लगाया जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी ठीक उसी तरह से अपना काम कर दिया, जिस तरह से विजय गोयल तिवारी को एक आंख देखना पसंद नहीं करते हैं। यूं भी विजय गोयल ने कभी किसी दूसरे प्रदेश अध्यक्ष को स्वीकार नहीं किया। बेशक विपक्ष और कार्यकर्ताओं को दिखाने के लिए विजय गोयल संगठन के कार्यक्रमों में शिरकत करते हों, लेकिन मंच पर एक साथ उनका बैठना मजबूरी बन जाता है।
इसके अलावा तो तिवारी को कार्यक्रम में आते और गोयल को जाते ही देखा जाता है। महत्वाकांक्षी विजय गोयल यूं तो दिल्ली में मुख्यमंत्री का चेहरा बनना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने मनोज तिवारी का पत्ता काटकर खुद प्रदेश अध्यक्ष बनने में भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। दिल्ली में संगठन के सामानांतर कार्यक्रम कर वे खुद को केन्द्रीय संगठन के समक्ष मजबूती से पेश करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं, लेकिन फिलहाल मोदी-शाह की जोड़ी ने उन्हें तवज्जो नहीं दी।
बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित व्यापारी सम्मेलन को कैश करने के लिए ही विजय गोयल ने अपने बलबूते कार्यक्रम कर प्रधानमंत्री को बुलवाया था, लेकिन उसका कोई लाभ उन्हें नहीं हुआ। दरअसल गोयल इस कार्यक्रम के बदले अपना दमखम दिखाकर लोकसभा चुनाव में टिकट पाने का पैंतरा चल रहे थे, लेकिन उनकी एक न चल सकी। बेशक उन्होंने टिकट के लिए हाथ-पांव तो मारे मगर निराशा ही हाथ लगी।
गलतफहमी का शिकार रहने वाले गोयल ने लोकसभा चुनाव के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व कई महीनों तक खुद को सीएम प्रत्याशी प्रोजेक्ट करवाने के लिए 70 विधानसभाओं में जाकर खूब सभाएं और प्रदर्शन किए, लेकिन इससे वहां के क्षेत्रीय नेताओं में भी असुरक्षा की भावना पनपने लगी। लिहाजा कार्यकर्ताओं ने उनसे दूरी बनाना ही बेहतर समझा।
दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और चुनाव समिति में जिस तरह से गोयल को तवज्जो नहीं मिली उससे साफ है कि केन्द्रीय संगठन दिल्ली में गोयल को कम से कम अब कोई बड़ी जिम्मेदारी देता नहीं दिखाई दे रहा है। चर्चा है कि दिल्ली में वरिष्ठ और अनुभवी भाजपा नेता होने के बावजूद प्रदेश द्वारा गोयल को वरीयता नहीं दी गई, जबकि डॉ. हर्षवर्धन को घोषणा पत्र का संयोजक बनाया गया जिनसे गोयल कहीं ज्यादा अनुभवी व वरिष्ठ भी हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि गोयल भूले से भी कोई अहम जिम्मेदारी मिलते ही मनमानी करने से कतई नहीं चूकते।