दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र संघ (डूसू) ने यूनिवर्सिटी के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। डूसू ने अपनी याचिका में केरल राज्य बोर्ड के छात्रों के दाखिले के लिए केवल 12वीं कक्षा के अंकों पर विचार करने का निर्णय किया है। केरल राज्य बोर्ड 11वीं और 12वीं कक्षाओं के अंक मिलाकर ‘ग्रेड’ निर्धारित करता है।
न्यायमूर्ति प्रतीक जालन ने डूसू के वकील को 10 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई के दौरान यह बताने को कहा कि उसका मामले में हस्तक्षेप करने का क्या अधिकार बनता है। डूसू ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अधिकारियों के ‘‘मनमाने, तर्कहीन और अनुचित आचरण’’ के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख कर रहा है, जिन्होंने कई छात्रों के मौलिक एवं कानूनी अधिकारों का हनन किया है।
याचिका में कहा गया है कि उसने सुसंगत नीति के संदर्भ में, केरल सरकार के सामान्य शिक्षा निदेशालय (उच्च माध्यमिक प्रकोष्ठ) सहित कुछ राज्य बोर्ड, मार्कशीट पर 11वीं और 12वीं दोनों के संयुक्त अंक देते हैं। नीति में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि छात्रों के ‘ग्रेड’ निर्धारित करने के लिए, 11वीं और 12वीं कक्षा के दोनों के संयुक्त अंकों पर गौर किया जाएगा।
डूसू के वकील आशीष दिक्षित ने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) कई वर्षों से प्रवेश बुलेटिन में यह प्रावधान शामिल कर रहा था कि ऐसे मामलों में जहां राज्य बोर्ड 11वीं और 12वीं दोनों कक्षा के दोनों के अंक मार्कशीट पर प्रकाशित करते हैं, उन बोर्ड के छात्रों की योग्यता उसी मार्कशीट के आधार पर तय की जाएगी।
उसने कहा, ‘‘ प्रतिवादी नंबर 2 (डीयू) ने 2021-2022 की अपनी प्रवेश प्रक्रिया में एकतरफा और मनमाने ढंग से निर्णय किया कि छात्रों को केवल 12वीं कक्षा के अंक भरने की आवश्यकता होगी। कई कॉलेज ने भी इस पर सवाल उठाए हैं।’’ याचिका में कहा गया कि शुरू में, यूनिवर्सिटी ने निर्देश दिया कि ऐसे मामलों को अभी लंबित रखा जाए।
हालांकि, कुछ घंटों के भीतर ही दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रवेश कार्यालय ने सभी कॉलेज को एक ईमेल भेजा, जिसमें कहा गया था कि प्रवेश सलाहकार समिति ने फैसला किया है कि केवल 12वीं कक्षा के अंकों पर ही गौर किया जाएगा। उसने कहा कि राज्य के बोर्ड ने लंबे समय से चली आ रही नीति के अनुसार परिणाम घोषित किए थे, जो शैक्षणिक सत्र 2020-2021 के लिए आयोजित परीक्षाओं के लिए अधिसूचित की गई थी।
इससे पहले, हाई कोर्ट ने एक याचिका खारिज कर दी थी जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी में केरल राज्य बोर्ड के छात्रों को दाखिला देने में असंगती का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने कहा था कि ‘कट-ऑफ’ तय करना यूनिवर्सिटी की प्रवेश नीति का मामला है।