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भयावह तस्वीर! आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से शव को ई रिक्शा में डाल अंतिम संस्कार कराने पहुंचा भाई

कोरोना महामारी में एक तरफ स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी है तो दूसरी ओर आलम ये है की शवों को श्मशान ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नसीब नहीं हो रही है।

कोरोना महामारी में एक तरफ स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी है तो दूसरी ओर आलम ये है की शवों को श्मशान ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नसीब नहीं हो रही है। उस बेबसी और दर्द को क्या कहेंगे जब अपने करीबी का शव भी ई-रिक्शा में ले जाना पड़े ? दिल्ली के शास्त्री पार्क निवासी 40 वर्षीय पवन की गुरुवार शाम तबियत खराब होने के कारण मृत्यु हो गई, मृतक की पत्नी लक्ष्मी और उनका भाई बलराम उन्हें ऑटो से स्थनीय अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
परिवार की आर्थिक स्थिति और ज्यादा जानकारी न होने के कारण भाई के शव को अस्पताल से ई रिक्शा पर ही श्मशान घाट तक ले जाने पर मजबूर होना पड़ा। मृतक के भाई बलराम शर्मा ने बताया कि, “एम्बुलेंस के लिए अस्पताल के बाहर खड़े एक व्यक्ति को बोला था। लेकिन उसने कहा कि ऐसे एम्बुलेंस नहीं मिलती है, आप ई रिक्शा ही करके शव को ले जाओ। ई रिक्शा वाले ने शमशान घाट तक के हमसे 150 रुपए लिए।” दूसरी ओर मृतक की पत्नी लक्ष्मी ने बताया कि,”गुरुवार शाम 4 बजे करीब मेरे पति बेहोश हो गए, मेरे पति की पहले से दिमागी हालात ठीक न होने के कारण उनका इलाज चल रहा था। अचानक दिल का दौरा पड़ा, हम उन्हें स्थनीय जग प्रवेश चंद्र अस्पताल लेकर गए।”
“अस्पताल पहुंचने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया, जिसके बाद उनके शव को घर लेकर नहीं आए, सीधे श्मशान घाट ही लेकर गए।” दरअसल परिवार में कोई अधिक लोग न होने के कारण कोई काम करने वाला नहीं था, साथ ही घर में बुजुर्ग मां है जो अपने बेटे को बेहद प्यार करती थी, यदि परिवार घर शव लेकर पहुंचता तो मां की भी तबियत बिगड़ सकती थी। इसी सोच के कारण मृतक पवन के शव को अस्पताल से सीधे श्मशान घाट ले जाया गया।
मृतक पवन की पत्नी लक्ष्मी कपड़ो की फैक्ट्री में काम करती है लेकिन महामारी के दौरान सब कुछ बंद होने के कारण वह घर बैठने पर मजबूर है। वहीं लक्ष्मी की दो छोटी बेटियां भी है जिनकी उम्र 11 और 3 वर्ष है। मृतक के भाई बलराम ने आगे बताते हुए कहा कि, “भाई के शव को निगमबोध शमशान घाट लेकर पहुंचने पर उधर मौजूद लोगों ने हमारी बहुत मदद की वहीं हमारे भी का अंतिम संस्कार भी निशुल्क कराया। क्योंकि मैं घर पर ही पर्स बनाने का काम करते हैं, लेकिन पाबंदियों के चलते काम बंद पड़ा हुआ है और घर की आर्थिक स्तिथी बिगड़ गई है।” शमशान घाट पर NGO चला रहे सुनील और उनके कुछ साथियों ने मिलकर बलराम के भाई का निशुल्क अंतिम संस्कार कराने में मदद की, इतना हीं नही रीति रिवाज में इस्तेमाल होने वाली सभी चीजों को भी खरीदवाया।

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