नई दिल्ली : ‘द मास्क मूवी’ का नाम तो ज्यादातर लोगों ने सुना होगा और कुछ ने देखी भी होगी, लेकिन यहां पर हम बात कर रहे हैं दिल्ली में प्रदूषण के चलते लोगों द्वारा पहने जाने वाले मास्क की। एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने स्पष्ट किया है कि अभी तक कोई भी ऐसी रिपोर्ट नहीं मिली जिससे कि मास्क को प्रदूषण से बचाव में कारगर माना जा सके। मास्क लगाना लोगों के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ वाली कहावत के समान साबित हो रहा है।
मतलब ये कि भले ही हम घरों से बाहर मास्क लगाकर निकलें, लेकिन वह हमारे स्वास्थ्य के लिए कारगर नहीं है। प्रदूषण का 200 फीसद स्तर बढ़ना साफ संकेत देता है कि हम सभी के लिए खतरे की घंटी तो बहुत पहले ही बज चुकी है, सवाल तो अब बचाव का है। डॉक्टरों की माने तो दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 से भी छोटे कण होने की वजह से ज्यादातर मास्क इंसानों के लिए लाभ नहीं पहुंचा सकते।
किसी भी शोध में यह सामने नहीं आया है कि मास्क पीएम 2.5 या इससे छोटे आकार के प्रदूषण से बचाने में असरदार हैं। उन्होंने बताया कि छोटे कण सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचकर शरीर के सभी अंगों तक पहुंचकर नुकसान पहुंचाने लगते हैं। हालांकि प्रदूषित इलाकों में कुछ बेहतर मास्क का इस्तेमाल किया जाए तो कुछ हद तक राहत मिल सकती है।
एम्स दिल्ली छोड़ने का दे चुका है सलाह
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने राजधानी में पिछले कई दिनों से जारी हेल्थ इमरजेंसी पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि अब दिल्ली रहने लायक नहीं है। इसे छोड़ने में ही भलाई होगी। उन्होंने कहा था कि गर्भवती महिलाएं, दमा के मरीज और वृद्ध व्यक्ति तत्काल दिल्ली छोड़ने का प्रबंध करें।