पूर्वी दिल्ली : दिल्ली पुलिस अपने पुलिसकर्मियों पर किस कदर मेहरबान रहती है, इसका अंदाजा नॉर्थ-ईस्ट डिस्ट्रिक्ट के नंद नगरी थाने की इस घटना के बारे में जानकर लगाया जा सकता है। दरअसल वहां दिल्ली पुलिस में बतौर सब इंस्पेक्टर कार्यरत राजन पाल और उसके भाई स्वराज सिंह पर करीब सात वर्ष बाद धोखाधड़ी समेत विभिन्न संबंधित धाराओं में केस तो दर्ज हुआ, लेकिन एफआईआर होने के बाद करीब पांच वर्ष बीत जाने तक आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई।
चौंकाने वाली बात ये है कि डीटीसी से रिटायर्ड 62 वर्षीय पीड़ित देवेंद्र पाल राठी ने रो-रोकर थाने से लेकर आला अधिकारियों के सामने इंसाफ दिलाने की गुहार लगाई मगर किसी ने उनकी एक न सुनी। सभी को लिखित में शिकायत भी दी गई थी। पीड़ित का आरोप तो ये भी है कि पुलिस ने अब तक इस केस में चार्जशीट तक दायर नहीं की है। पीड़ित एसएचओ नंद नगरी अवतार सिंह के पास गए तो उन्होंने पीड़ित से कहा कि आधा मकान उसके नाम करके समझौता कर लो, जबकि जांच अधिकारी सुभाष बालियान का कहना है कि तीन लाख रुपए देकर समझौता कर लो।
इधर, आरोपी पुलिसकर्मी बार-बार पीड़ित परिवार को जान से मरवाने व उनका सामान घर से बाहर फिकवाने की धमकी दे रहा है। पीड़ित का कहना है कि आरोपी दिल्ली पुलिस का एसआई है, इसी कारण पुलिस उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। मामले में दर्ज एफआईआर के मुताबिक, देवेंद्र परिवार सहित सुंदर नगरी इलाके में रहते हैं। वह डीटीसीप से बतौर एसिस्टेंट ट्रैफिक इंस्पेक्टर (एटीआई) रिटायर्ड हैं। वर्ष 2007 में आरोपी ने साथ में व्यापार करने का झांसा देकर पीड़ित से एक कोरे कागज पर उनके दस्तखत ले लिए थे।
इसके बाद उनके उस दस्तखत का इस्तेमाल कर फर्जी तरीके से उनका मकान अपने नाम कर लिया था। इसके बाद वह उन्हें और उनके परिवार को घर से निकालने के दबाव बनाता रहा और धमकियां देता रहा। इस संबंध में पुलिस ने 11 दिसंबर 2014 को एफआईआर दर्ज की थी। मगर अब तक आगे कोई कार्रवाई नहीं की।
बहू ने कर ली थी खुदकुशी
देवेंद्र ने बताया कि आरोपी राजन पाल परिवार को लगातार धमकियां दे रहा था। उसकी इन्हीं धमकियों और घर छिन जाने के डर से उनकी बहू ने भेंटा स्थित अपने मायके में खुदकुशी तक कर ली थी। आरोप है कि आरोपी अब भी आए दिन परिवार को धमकाता रहता है।
ब्रांच में अटकी है फाइल
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि पुलिस ने चार्जशीट तैयार कर के प्रोसिक्यूशन ब्रांच को दे दी है। चूंकि मामला पुलिसकर्मी से जुड़ा है, इस कारण ब्रांच को जांच करने में समय लग रहा है। वहां कई फाइल पेंडिंग रहती हैं। हालांकि इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि चार्जशीट फाइल करने में पांच वर्ष क्यों लग गए।