दिल्ली वन विभाग ने डीडीए को अवगत कराया है कि यमुना के बाढ़ संभावित मैदानी हिस्सों में करीब नौ हज़ार हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है। जिसका इस्तेमाल नदी की पारिस्थितिकी के अनुकूल वृक्षारोपण और राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं के लिए अनिवार्य वनरोपण के वास्ते किया जा सकता है।गौरतलब है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने राष्ट्रीय राजधानी में हरित गतिविधियों के लिए भूमि की कमी का मुद्दा बार-बार उठाया है।
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जारी
वन विभाग ने बताया कि उसने यमुना सहित 13 प्रमुख नदियों का कायाकल्प करने के लिए केंद्र की परियोजना पर विचार करते हुए, यमुना के बाढ़ संभावित मैदानी हिस्सों में वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध भूमि का वानिकी के माध्यम से विस्तृत विश्लेषण किया है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मार्च में 13 नदियों के कायाकल्प के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) जारी की थी।विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में संरक्षण, वनरोपण, जलग्रहण उपचार, पारिस्थितिकीय पुनरुद्धार, नमी संरक्षण, आजीविका सुधार, आय सृजन, नदी के किनारों और इको-पार्क विकसित करके पर्यावरण पर्यटन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध भूमि का विस्तृत विश्लेषण किया
केंद्र के अनुसार, डीपीआर में प्रस्तावित गतिविधियों से हरियाली बढ़ाने, मिट्टी के कटाव को कम करने, जल-स्तर बढ़ाने, गैर-लकड़ी वनोपज क्षेत्र में लाभ के अलावा कार्बन डाइऑक्साइड कम करने में मदद मिलेगी।वन विभाग की ओर से डीडीए को जारी पत्र के मुताबिक, ''मुख्य सचिव के निर्देशानुसार, यमुना के बाढ़ से प्रभावित रहने वाले मैदानी हिस्सों में वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध भूमि का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।''पत्र में कहा गया है कि ओ-जोन में कम से कम 5,532 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है। कुल मिलाकर, यमुना के बाढ़ संभावित हिस्सों में लगभग 9,000 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है।
किसी न किसी रूप में विकसित किया गया
विभाग ने कहा कि यमुना के बाढ़ प्रभावित मैदानों की यह 9,000 हेक्टेयर भूमि 2,480 हेक्टेयर उस भूमि से इतर है, जिसपर 2009 से या तो अतिक्रमण किया जा चुका है, या उसे किसी न किसी रूप में विकसित किया गया है।वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, यदि इन हिस्सों में उपयुक्त वृक्षारोपण किया जाता है, तो दिल्ली के हरित क्षेत्र को वर्तमान के 23 प्रतिशत से बढ़ाकर 2025 में 25 प्रतिशत किया जा सकता है।