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प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ साजिश के आरोपों की जांच करेंगे पूर्व न्यायाधीश पटनायक

बाद न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) पटनायक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट न्यायालय को देंगे और इसके बाद इस मामले में फिर से आगे सुनवाई की जायेगी। 

 उच्चतम न्यायालय ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ बड़ी साजिश के आरोपों की जांच के लिए बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए के पटनायक की एक सदस्यीय समिति नियुक्त की। शीर्ष अदालत ने कहा कि देश के अमीर तथा ताकतवर लोग जो सोचते हैं कि वे उसे ‘‘रिमोट से नियंत्रित’’ कर सकते हैं, ‘‘आग से खेल रहे’’ हैं। बीते तीन-चार सालों में शीर्ष अदालत की ‘‘छवि खराब करने के लिए व्यवस्थागत तरीके से हमले’’ पर नाराजगी जताते हुए न्यायालय ने चेताया कि अगर इसे रोका नहीं गया तो यह महान संस्था ‘‘खत्म हो जाएगी।’’

अदालत अधिवक्ता उत्सव सिंह बैंस द्वारा दायर हलफनामे पर सुनवाई करते हुए ये कड़ी टिप्पणियां कीं। इस हलफनामे में बैंस ने न्यायमूर्ति गोगोई को यौन उत्पीड़न आरोपों में फंसाने के लिए ‘‘बड़ी साजिश’’ का दावा किया। एक संबंधित घटनाक्रम में, प्रधान न्यायाधीश गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिये गठित तीन न्यायाधीशों की आंतरिक जांच समिति से न्यायमूर्ति एन वी रमण ने खुद को अलग कर लिया। न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली इस समिति से न्यायमूर्ति रमण ने स्वयं को अलग कर लिया है। इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली न्यायालय की पूर्व महिला कर्मचारी ने इस समिति में न्यायमूर्ति एन वी रमण को शामिल किये जाने पर अपनी आपत्ति व्यक्त की थी।

 शिकायतकर्ता महिला का कहना था कि न्यायमूर्ति रमण प्रधान न्यायाधीश के नजदीकी मित्र हैं और नियमित रूप से उनके आवास पर आते रहते हैं। तीस मिनट चली सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने कहा कि देश को यह संदेश देने का समय आ गया है कि वह ‘‘कमजोर नहीं’’ है और कोई भी उसे धन या राजनीतिक शक्ति की मदद से ‘‘रिमोट से नियंत्रित’’ नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने कहा कि अब देश के अमीरों तथा ताकतवर लोगों को यह बताने का समय आ गया है कि वे ‘‘आग से खेल रहे’’ हैं।

पीठ ने कहा कि लोग धन बल से अदालत की रजिस्ट्री में हस्तक्षेप का प्रयास कर रहे हैं और जब कोई इन चीजों को सुधारना चाहता है तो उसे ‘‘मार दिया जाता है’’ या उसकी ‘‘छवि खराब की जाती है।’’ न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘यह मत सोचिए कि धरती पर किसी भी चीज से सुप्रीम कोर्ट को नियंत्रित किया जा सकता है, चाहे वह धन बल हो या राजनीतिक बल हो।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बीते तीन-चार सालों में इस संस्था के साथ जिस तरह का व्यवहार हो रहा है, हम उससे नाराज हैं और हम कहना चाहते हैं कि अगर ऐसा होगा तो यह खत्म हो जाएगी और यह चल नहीं पाएगी। यह इस महान संस्था पर व्यवस्थागत हमला, इसकी छवि खराब करने का व्यवस्थागत खेल है।’’

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि अदालत में लंबित मामलों में पत्र लिखे जा रहे हैं और पुस्तक छापी जा रही हैं और यह परंपरा बंद होनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या इस देश के अमीर और ताकतवर लोग सोचते हैं कि वे उच्चतम न्यायालय को रिमोट से नियंत्रित कर सकते हैं?’’ पीठ ने ये टिप्पणियां उस समय कीं जब सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अधिवक्ता बैंस द्वारा उनके हलफनामे में लगाए आरोपों की एसआईटी द्वारा जांच होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने बड़ी साजिश का दावा किया है। सुनवाई की शुरुआत में, बैंस ने अपने दावों के समर्थन में अदालत में सीलबंद लिफाफे में अतिरिक्त हलफनामा सौंपा।

 केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और गुप्तचर ब्यूरो (आईबी) के निदेशकों तथा दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया गया कि आवश्यकता पड़ने पर वे न्यायमूर्ति पटनायक के साथ हर तरह का सहयोग करें। पीठ ने स्पष्ट किया कि यह जांच प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों पर गौर नहीं करेगी। पटनायक समिति की जांच के नतीजे प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत पर कार्यवाही करने वाली आंतरिक समिति को प्रभावित नहीं करेंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच पूरी करने के बाद न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) पटनायक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट न्यायालय को देंगे और इसके बाद इस मामले में फिर से आगे सुनवाई की जायेगी।

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