नई दिल्ली: दक्षिण दिल्ली के नाले की सफाई के मामले में हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली सरकार को फटकार लगायी। नाले से निकाले गए कचरे को साफ नहीं करने पर अदालत ने कहा कि घोर अक्षमता और लापरवाही के कारण दिल्ली सरकार नागरिकों के प्रति क्रूर है। नालों की सफाई की वार्षिक योजना नहीं रहने और मानसून के पहले महज खानापूर्ति के लिए दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी)को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा, बाबुओं को समूचे शहर का काम करने के लिए वर्ष भर पैसा मिला है। न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ साउथ एक्सटेंशन-दो के निकट कुशक नाले में मलबे की सफाई के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी । नाले की सफाई 26 जून तक कर लेने का वादा किया गया था। पीठ ने कहा, नालियों (गंदा पानी और जल-मल)की सफाई के लिए आपके पास मास्टर प्लान होना चाहिए। आप खानापूर्ति वाला जवाब नहीं दे सकते ।
आपके पास समग्र दृष्टि होनी चाहिए। तथ्य है कि कोई योजना ही नहीं है। पीठ ने कहा, हर साल राजधानी में जलभराव होता है। चीजें भयानक रूप में है । पूरे साल कुछ नहीं होता और मलबा गिराया जाता है। फिर आप मानसून आने के पांच दिन पहले सफाई की कोशिश करते हैं । नाला में जमा कचरा महामारी होने का इंतजार कर रहा था। जवाब में पीडब्ल्यूडी ने कहा कि कुशक नाला से मानसून के दौरान बारिश का पानी निकल सकता है। इस पर अदालत ने कहा कि आप हफनामा दे कि मॉनसून के दौरान इस वर्ष यहां जलभराव नहीं होगा। इस प्रश्र पर विभाग के अधिकारी मौन हो गए।
पीडब्ल्यूडी और जल बोर्ड ने अदालत से कहा कि बारिश के पानी की निकासी संबंधी नालियों की देखरेख नगर निगम के अधीन है। इसपर अदालत ने कहा कि राजधानी में मल्टिप्लिसिटी ऑफ अथॉरिटी की बड़ी समस्या है। एक विभाग दूसरे पर अपनी जिम्मेदारी डालते हैं। हालांकि अदालत ने पीडब्ल्यूडी, के सचिव, जल बोर्ड के सीईओ और दक्षिण दिल्ली नगर निगम के कमिश्रर को निर्देश दिया है कि वह क्षेत्र का मुआयना करे और यह सुनिश्चित करें कि कुशक नाला में बेरोकटोक पानी का बहाव यमुना नदी में हो। वहीं अदालत ने अगली सुनवाई 12 जुलाई से पूर्व इन्हें स्टेटस रिपोर्ट भी सौंपने के आदेश दिए हैं।