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नवजोत सिंह सिद्धू की अपील पर न्यायालय में सुनवाई पूरी, SC ने फैसला सुरक्षित रखा

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सुप्रीम कोर्ट ने तीस साल पुराने रोड रेज के मामले में पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और अब मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की अपील पर आज सुनवाई पूरी कर ली। सिद्धू ने इस घटना में उन्हें दोषी ठहराने और तीन साल की सजा सुनाने के पंजाब और हरियाणा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे रखी है। न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि फैसला बाद में सुनाया जाएगा ।

सिद्धू की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर एस चीमा ने कहा कि पीडि़त की मृत्यु के कारण के संबंध में रिकार्ड पर लाए गए साक्ष्य ‘अनिश्चित और विरोधाभासी’ हैं। उन्होंने कहा कि मृतक गुरनाम सिंह की मृत्यु के कारण के बारे में मेडिकल राय भी  ‘अस्पष्ट’ है। पीठ ने सिद्धू के साथ ही तीन साल की सजा पाने वाले रूपिन्दर सिंह संधू की अपील पर भी सुनवाई पूरी कर ली।

पंजाब विधान सभा चुनाव से पहले ही बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने इससे पहले पीठ से कहा था कि हाई कोर्ट का निष्कर्ष मेडिकल साक्ष्य पर नहीं बल्कि ‘राय’ पर आधारित है। हालांकि, अमरिन्दर सिंह सरकार ने 12 अप्रैल को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत में हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

यह घटना 27 दिसंबर, 1988 की है जब गुरनाम सिंह, जसविन्दर सिंह और एक अन्य व्यक्ति एक विवाह कार्यक्रम के लिये बैंक से पैसा निकालने जा रहे थे तो पटियाला में शेरनवाला गेट क्रासिंग के निकट एक जिप्सी में सिद्धू और संधू कथित रूप से मौजूद थे। आरोप है कि जब वे क्रासिंग पर पहुंचे तो मारूति कार चला रहे मुरनाम सिंह ने देखा की जिप्सी बीच सड़क पर खड़ी है।

उन्होंने जिप्सी में सवार सिद्धू और संधू से गाड़ी हटाने के लिए कहा जिसे लेकर दोनों में तीखी तकरार हो गई। पुलिस का दावा हैकि सिद्धू ने सिंह की पिटाई की और घटनास्थल से भाग गए। घायल सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। इस मामले में निचली अदालत ने सितंबर 1999 में सिद्धू को हत्या के आरोप से बरी कर दिया।

लेकिन उच्च न्यायालय ने दिसंबर , 2006 में इस फैसले को उलटते हुए सिद्धू और सह आरोपी संधू को गैर इरादतन हत्या का दोषी पाया और उन्हें तीन तीन साल की कैद तथा एक एक लाख रूपए जुर्माने की सजा सुनाई। बाद में , शीर्ष अदालत ने 2007 में सिद्धू और संधू को दोषी ठहराने के फैसले पर रोक लगाते हुए उनके अमृतसर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव लड़ने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

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