High Court ने दिल्ली सरकार से अतिदेय वाहन नीति के बारे में पूछे सवाल

High Court ने दिल्ली सरकार से अतिदेय वाहन नीति के बारे में पूछे सवाल
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दिल्ली High Court ने बुधवार को दिल्ली सरकार से कहा कि वह समयसीमा पूरी कर चुके जब्त वाहनों को उनके मालिकों को सौंपने के लिए नीति बनाने और कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में चार सप्ताह के भीतर जानकारी दे।

Highlights:

  • नीति के अभाव में अदालत हर दिन प्रभावित लोगों की याचिका सुन रहा है- न्यायमूर्ति जसमीत सिंह
  • 15 वर्ष और 10 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों का उपयोग राष्ट्रीय राजधानी में नहीं किया जाएगा
  • नीति अंतिम चरण में है और जल्द ही यह जारी की जाएगी- दिल्ली सरकार के वकील
  • वाहन नहीं छोड़ा गया तो अदालत अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए बाध्य होगी- HC

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि नीति के अभाव में अदालत को हर दिन प्रभावित लोगों की याचिकाओं का सामना करना पड़ रहा है। अदालत ने कहा कि सरकार प्रदूषण को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन नागरिकों को परेशान नहीं किया जा सकता। न्यायाधीश ने कहा, ''यह परेशानी भरा है। नागरिकों को परेशान न करें। हर दिन मेरे पास (ऐसी जब्ती और वाहनों को न छोड़ने पर) पांच याचिकाएं आती हैं।''

उच्च न्यायालय ने 15 वर्ष और 10 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल एवं डीजल वाहनों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाले न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने के आरोप में अधिकारियों द्वारा वाहन जब्त किए जाने के खिलाफ 22 अगस्त को याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इसने वाहन मालिकों के शपथपत्र पर वाहन छोड़ने का निर्देश देते हुए कहा था कि वे या तो उन्हें स्थायी रूप से निजी स्थानों पर खड़े करेंगे या उन्हें शहर की सीमा से हटा देंगे। उस वक्त अदालत ने दिल्ली सरकार से ऐसे वाहनों के प्रबंधन के लिए एक नीति बनाने को कहा था, जब मालिक यह आश्वासन देने को तैयार थे कि उनका उपयोग राष्ट्रीय राजधानी में नहीं किया जाएगा।

दिल्ली सरकार के वकील ने बुधवार को अदालत को बताया कि नीति अंतिम चरण में है और जल्द ही यह जारी की जाएगी। अदालत ने निर्देश दिया, ''प्रतिवादी को निर्देशानुसार नीति की स्थिति के बारे में रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर दाखिल करनी होगी।'' इसने 'परिवार से विरासत में मिली' 15 साल से अधिक पुरानी एक पेट्रोल कार की मालिक की अवमानना याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता सुषमा प्रसाद ने दावा किया कि उनकी कार को कबाड़ बनाने से मुक्त करने के आदेश के बावजूद अधिकारी ऐसा करने में विफल रहे।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता आदित्य एन प्रसाद ने कहा कि वाहन छोड़ने के आदेश के संदर्भ में याचिकाकर्ता ने संबंधित प्राधिकारी को एक शपथपत्र दिया था कि वाहन सार्वजनिक भूमि पर नहीं चलेगा या वहां खड़ा नहीं किया जाएगा। सरकारी वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता कबाड़ का काम करने वालों से संपर्क कर सकती है और अदालत के निर्देशों के अनुसार वाहन उठाने के शुल्क के भुगतान के बाद वाहन ले जा सकती है। न्यायमूर्ति सिंह ने चेताया कि यदि वाहन नहीं छोड़ा गया तो अदालत अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए बाध्य होगी।

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