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दिल्ली दंगा : हाई कोर्ट ने लचर जांच के लिए पुलिस पर लगाए गए 25,000 रुपये के जुर्माने पर रोक को बढ़ाया आगे

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक निचली अदालत द्वारा पुलिस पर लगाए गए 25,000 रुपये के जुर्माने पर रोक को सोमवार को बढ़ा दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक निचली अदालत द्वारा पुलिस पर लगाए गए 25,000 रुपये के जुर्माने पर रोक को सोमवार को बढ़ा दिया। निचली अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में जांच को ‘लचर और हास्यास्पद’ बताया था। दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस वी राजू ने न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद को सूचित किया कि उन्हें इस मामले में शिकायतकर्ता मोहम्मद नासिर का जवाब नहीं मिला है। नासिर की ओर से पेश हुए वकील जतिन भट्ट ने कहा कि उन्होंने सोमवार को जवाब दाखिल किया है। 
इस पर अदालत ने कहा कि यह रिकॉर्ड में नहीं है और उन्हें इसे रिकॉर्ड में लाने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया। अदालत ने मामले को 15 नवंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और अंतरिम आदेश जारी रखने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट पुलिस की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसने जांच को लचर और हास्यास्पद बताने वाले निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी है। हाई कोर्ट ने 25,000 रुपये जुर्माना लगाने के आदेश पर 28 जुलाई को रोक लगा दी थी।
हाई कोर्ट ने पुलिस जांच के खिलाफ निचली अदालत की सख्त कार्रवाई में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा था कि वह सुनवाई के बिना टिप्पणियों को नहीं हटा सकती। सत्र अदालत का आदेश एक मजिस्ट्रेटी अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर पारित किया गया था जिसमें दिल्ली पुलिस को मोहम्मद नासिर की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। दंगों के दौरान बंदूक की गोली लगने से नासिर की बाईं आंख की रोशनी चली गई। हाई कोर्ट ने इससे पहले निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका पर नोटिस जारी कर शिकायतकर्ता से जवाब मांगा था।
एएसजी ने कहा था कि फिलहाल मुख्य शिकायत जुर्माने और सख्ती को लेकर है। उन्होंने कहा कि कथित घटना से संबंधित एक प्राथमिकी की पहले ही पूरी तरह से जांच की जा चुकी है और आरोपी संबंधित समय पर मौके पर मौजूद नहीं था और सभी जांच से एक ही निष्कर्ष निकलेगा। शिकायतकर्ता की पैरवी करने वाले वकील महमूद प्राचा ने दावा किया था कि पुलिस का रुख भ्रामक था और उनके मुवक्किल पर अदालत के समक्ष अपनी याचिका वापस लेने का जबरदस्त दबाव था।

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