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कारगिल विजेताओं को नौकरी से निकालना उनकी वीरता का अपमान : तिवारी

तिवारी ने कहा कि अपमान के बारे में वह अरविंद केजरीवाल से बात करेंगे और भूतपूर्व सैनिकों को पुनः उनकी नौकरियों पर तैनात करने की माग करेंगे।

नई दिल्ली : दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों की सुरक्षा में लगे कारगिल युद्ध के विजेताओं को नौकरी से निकालने का आदेश जारी कर न सिर्फ विजेताओं की वीरता का अपमान किया है, बल्कि दिल्ली के अस्पतालों की सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। 
उन्होंने कहा कि इस अपमान के बारे में वह अरविंद केजरीवाल से बात करेंगे और भूतपूर्व सैनिकों को पुनः उनकी नौकरियों पर तैनात करने की माग करेंगे। कर्नल (सेवानिवृत्त) राजेश के नेतृत्व में कारगिल युद्ध में लड़ने वाले जवानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी से मिलकर उनके ऊपर दिल्ली सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचार की व्यथा सुनाई। मनोज तिवारी ने कहा कि यह फैसला ऐसे समय में आया है कि जब पूरे देश में अस्पतालों की सुरक्षा को लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं और डॉक्टरों पर निरंतर हो रहे हमलों के बाद अस्पतालों की सुरक्षा को और मजबूत करने पर विचार हो रहा है। 
पूर्व सैनिकों को अस्पतालों में तैनात करने की बात चल रही है, इस फैसले से यह जाहिर होता है कि दिल्ली की सरकार अस्पतालों और डॉक्टरों की सुरक्षा के प्रति कितनी गंभीर है, जो प्रशिक्षित और परिपक्व सुरक्षा व्यवस्था को हटाकर अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि मैं हैरान हूं कि इस जब पूरा देश कारगिल विजय दिवस पर सेना के उन शूरवीरों पर गर्व महसूस कर रहा है जिन्होंने अपने पराक्रम से न सिर्फ पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया, बल्कि दुश्मन देश द्वारा कब्जाई गई जमीन को अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर खाली कराया। ऐसे विजेताओं को केजरीवाल सरकार ने चौकीदारी के काबिल भी नहीं समझा। 
यह पूर्व सैनिकों का अपमान है और सेना के मनोबल तोड़ने की एक गंदी हरकत है। एक ओर केजरीवाल सत्ता के स्वार्थ के लिए सरकारी खजाने को लुटा ने को तैयार हैं तो दूसरी ओर दिल्ली के अस्पतालों की सुरक्षा को दांव पर लगाने के लिए ऐसी हरकत कर रहे हैं। गौरतलब है की काफी संख्या में ऐसे पूर्व सैनिकों ने मनोज तिवारी से मिलकर और अपना दर्द बयां किया। उन्होंने तब बताया था कि अपनी मांगों को लेकर जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने का प्रयास किया तो उनकी फरियाद सुनना तो दूर बल्कि मुख्यमंत्री से मिलने भी नहीं दिया गया।

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