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जमानत देते वक्त निचली अदालतें विदेशियों को डिटेंशन सेंटर में भेजने का निर्देश नहीं दे सकतीं : दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि निचली अदालतें विदेशी नागरिकों को उनके खिलाफ यहां दर्ज मामलों में जमानत देते समय उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजने का निर्देश नहीं दे सकतीं।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि निचली अदालतें विदेशी नागरिकों को उनके खिलाफ यहां दर्ज मामलों में जमानत देते समय उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजने का निर्देश नहीं दे सकतीं।
न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ एक नाइजीरियाई व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे अप्रैल 2021 में दिल्ली आबकारी अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत लाए गए एक आपराधिक मामले में जमानत मिलने के बावजूद एक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया था, उसका वीजा खत्म हो गया था।
एक सत्र अदालत ने तब डिटेंशन सेंटर से उसकी रिहाई का निर्देश इस शर्त पर दिया कि वह निर्देशों का पालन करेगा, लेकिन याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसे अभी तक रिहा नहीं किया गया है।
न्यायमूर्ति दयाल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता को एक बार जमानत पर रिहा किए जाने के बाद कानूनी प्रक्रिया के बिना हिरासत में नहीं लिया जा सकता। तथ्य यह है कि वह आबकारी अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत अपराधों के लिए मुकदमे का सामना कर रहा है।’
उन्होंने कहा, ‘एक विदेशी नागरिक को जमानत देते समय कोई मजिस्ट्रेट कोर्ट या सत्र न्यायालय, उस व्यक्ति को डिटेंशन सेंटर भेजने का निर्देश नहीं दे सकता। निचली अदालत जमानत देते समय इस तरह के निर्देश पारित करने के लिए सक्षम नहीं है। डिटेंशन सेंटर न्यायिक हिरासत के लिए नहीं हैं, बल्कि एक ऐसा स्थान है, जहां एक कार्यकारी आदेश पर किसी विदेशी नागरिक को हिरासत में लिया जाता है और यह विदेशी अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी का विशेषाधिकार है।’
दिल्ली उच्च न्यायालय को दी गई जानकारी के अनुसार, निचली अदालतों द्वारा जारी आदेशों के मुताबिक संबंधित अधिकारियों ने विदेशी नागरिक को बार-बार वीजा देने से इनकार कर दिया और विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी (एफआरआरओ) ने उसे डिटेंशन सेंटर नहीं छोड़ने का निर्देश दिया।
अदालत ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता पहले से ही दो साल से वास्तविक हिरासत में है। आबकारी अधिनियम के तहत अधिकतम सजा तीन साल तक और विदेशी अधिनियम के तहत पांच साल तक बढ़ाई जा सकती है और एक-एक लाख रुपये के व्यक्तिगत जमानती मुचलके पर डिटेंशन सेंटर से उसकी रिहाई का निर्देश दिया।
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता का पासपोर्ट वैध है, अदालत ने केंद्र सरकार को प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों के अनुसार आठ सप्ताह के भीतर वीजा के लिए उसके अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों को विशेष परमिट, वीजा या यात्रा दस्तावेज जारी करते समय विदेशी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अधिक समय तक रहने को वैध नहीं माना जाएगा, बल्कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वे राज्य के खर्च पर किसी डिटेंशन सेंटर में कैद नहीं हैं।
अदालत ने कहा, ‘बिना अनुमति के भारत से बाहर यात्रा पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। यह स्वतंत्रता और मानव अधिकार को मान्यता देने और परीक्षण के उद्देश्य से विदेशी नागरिकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के बीच एक विवेकपूर्ण संतुलन सुनिश्चित करेगा और प्रतिबंधों/विनियमों/शर्तो के अधीन होगा।’
अदालत ने याचिकाकर्ता को एक स्थायी पता देने, अपना पासपोर्ट जमा करने और स्थानीय पुलिस स्टेशन में सप्ताह में एक बार हाजिर होने का आदेश दिया था। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि वह ट्रायल कोर्ट को अपनी पत्नी के ठिकाने और उसके सेल फोन नंबर सहित पूरी जानकारी दे।

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