दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि केन्द्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का मसौदा सुनने में तो बहुत अच्छा लग रहा है लेकिन इसमें यह नहीं बताया गया कि इन बदलावों को लागू कैसे किया जाएगा। सिसोदिया ने कहा कि एनईपी को अगर चरणबद्ध तरीके से लागू नहीं किया गया, तो इसका अंत भी ‘किसी भी छात्र को फेल नहीं करने की नीति’(नो डिटेंशन पॉलिसी) की तरह एक ‘आपदा’ के रूप में हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘ कुछ चीजों को छोड़कर यह एक अच्छा मसौदा है, जिन सिद्धान्तों की उन्होंने बात की है वे अच्छे हैं। उन्होंने उच्च लक्ष्य निर्धारित किए हैं लेकिन नीति में यह नहीं बताया गया कि इसे कैसे हासिल किया जाएगा।’’ सिसोदिया ने कहा, ‘‘यही नो-डिटेंशन पॉलिसी के साथ हुआ था, शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया और नो-डिटेंशन पॉलिसी को बिना किसी तैयारी के लागू किया गया।
उन्होंने कहा, वे कह सकते थे कि बी.एड कार्यक्रम में बदलाव होगा, अगले साल किताबें बदली जाएंगी, तृतीय वर्ष की परीक्षाओं के प्रारूप को बदला जाएगा और फिर ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’लागू की जाएगी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षकों को नहीं पता कि क्या करना है और कैसे करना है। उन्हें बस इतना पता है कि उन्हें बच्चों को फेल नहीं करना। यह इसके साथ भी हो सकता है, एनईपी का भी हाल नो-डिटेंशन पॉलिसी वाला हो सकता है।’’
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक पैनल ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर एक मसौदा सौंपा था। मौजूदा एनईपी का ढांचा 1986 में तैयार किया गया था और उसे 1992 में संशोधित भी किया गया। 2014 आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में नई शिक्षा नीति का वादा किया गया था।