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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता के लिए दायर जनहित याचिका का विरोध किया

उच्च न्यायालय ने 31 मई को केंद्र को नोटिस जारी किया था और 27 अगस्त को होने वाली सुनवाई से पहले याचिका पर जवाब तलब किया था।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रूख कर, एकता, भाईचारा और राष्ट्रीय एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका का विरोध किया है। 
मामले में पक्षकार बनाए जाने का अनुरोध करते हुए, बोर्ड ने अपने आवेदन में दलील दी कि कानून के तहत यह जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। बोर्ड ने दावा किया कि याची भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय को निरर्थक याचिकाएं दायर करने की आदत है। 
बोर्ड ने अपनी अर्जी में कहा कि मौजूदा याचिका निरर्थक है और अब यह कानूनी मुद्दा नहीं है। बोर्ड ने कहा कि उच्चतम न्यायालय 2003 में इस मुद्दे पर गौर कर चुका है। उसने उपाध्याय पर ऐसा जुर्माना लगाने की मांग की जो एक मिसाल कायम करे। 
आवेदन में आगे कहा गया है कि बोर्ड, समान नागरिक संहिता का भारतीय मुस्लिमों के निजी कानूनों के व्यावहारिक पहलुओं पर पड़ने वाले संभावित असर से फिक्रमंद है। बोर्ड ने आवेदन में कहा कि मौजूदा ‘शरारतपूर्ण’ याचिका के जरिए मौजूदा यथास्थिति (जिसमें भारतीय मुसलमानों के निजी मामले इस्लामी धार्मिक कानून के जरिए निर्धारित होते हैं) पर हमला करने की कोशिश है। 
उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि केंद्र संविधान के अनुच्छेद 44 में उल्लिखित, समान नागरिक संहिता को बनाने में ‘विफल’ रहा है। समान नागरिक संहिता विभिन्न धार्मिक समुदायों की प्रथाओं और धर्मग्रंथों पर आधारित सभी निजी कानूनों की जगह लेगी और देश के हर नागरिक के लिए एक समान नियम होंगे। उच्च न्यायालय ने 31 मई को केंद्र को नोटिस जारी किया था और 27 अगस्त को होने वाली सुनवाई से पहले याचिका पर जवाब तलब किया था। 

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