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निर्भया मामला: न्यायालय ने दोषी की मौत की सजा की पुष्टि की, पुनर्विचार याचिका खारिज

दिल्ली सरकार की ओर से अदालत में याचिका का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनमें ‘‘मानवता रोती’’ है और यह मामला उन्हीं में से एक है।

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में चार दोषियों में से एक की मौत की सजा की पुष्टि करते हुये बुधवार को 2017 के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिका खारिज कर दी। मुजरिम अक्षय कुमार सिंह की पुनर्विचार याचिका खारिज होने के साथ ही अब निर्भया मामले में मौत की सजा का फैसला बरकरार रखने के शीर्ष अदालत के निर्णय के खिलाफ चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिकायें खारिज हो गयी हैं। इन दोषियों के पास अभी सुधारात्मक याचिका दायर करने का एक अंतिम कानूनी विकल्प उपलब्ध है। न्यायाधीश सामान्यतया इस तरह की याचिकाओं पर अपने चैंबर में ही विचार करते हैं। 
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ जुलाई को मौत की सजा बहाल रखने के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दोषी मुकेश कुमार, पवन गुप्ता और विनय शर्मा की याचिकायें खारिज कर दी थीं। न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने अक्षय की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुये अपने 20 पन्नों के फैसले में कहा कि 2017 के शीर्ष अदालत के निर्णय में कोई ऐसी खामी नहीं है जिसकी वजह से उस पर फिर से विचार किया जाये। 
पीठ ने कहा, ‘‘पुनर्विचार याचिका बार-बार सारे साक्ष्यों की विवेचना के लिये फिर से अपील पर सुनवाई करना नहीं है। कोई पक्षकार अपील पर फिर से सुनवाई और नये निर्णय के लिये फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने का हकदार नहीं है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘सारी परिस्थितियों और यह मामला ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ श्रेणी में आने के मद्देनजर मौत की सजा की पुष्टि की जाती है।’’ 
शीर्ष अदालत ने अक्षय की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने के एक घंटे के भीतर ही अपना फैसला सुनाया। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान निर्भया के माता-पिता भी न्यायालय में मौजूद थे। पीठ ने पुनर्विचार याचिका में ‘कलियुग’ में व्यक्ति के मृत शरीर से बेहतर नहीं होने और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के स्तर की वजह से जीवन छोटा होने के कारण मौत की सजा सुनाने को व्यर्थ बताने जैसे आधार रखे जाने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। 
पीठ ने कहा कि उसे पांच मई, 2017 के फैसले के निष्कर्षों और साक्ष्यों में किसी प्रकार की कोई खामी नजर नहीं आती। पुनर्विचार याचिका में बताया गया एक भी कारण पांच मई, 2017 के फैसले पर विचार के योग्य नहीं है। इसलिए, इसे खारिज किया जाता है। पीठ ने कहा कि अक्षय ने भी पुनर्विचार याचिका में ठीक वैसे ही आधार बताये हैं जो तीन अन्य दोषियों ने अपनी याचिकाओं में उठाये थे। 
पीठ द्वारा पुनर्विचार याचिका खारिज करने का फैसला सुनाते ही मुजरिम अक्षय के वकील वकील ए. पी सिंह ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा। दिल्ली सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि कानून में दया याचिका दायर करने के लिये एक सप्ताह के समय का प्रावधान है। 
पीठ ने कहा, ‘‘हम इस सबंध में कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं। यदि कानून के अनुसार याचिकाकर्ता को कोई समय उपलब्ध है तो यह याचिकाकर्ता पर निर्भर है कि वह इस समय सीमा के भीतर दया याचिका दायर करने के अवसर का इस्तेमाल करे। ’’ पीठ ने अपना निर्णय सुनाते हुये कहा कि दोषी ने एक बार फिर अभियोजन के मामले और अदालतों के निष्कर्षों को उठाया है लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। 
दोषी के वकील ने जांच में खामियों का मुद्दा उठाया तो पीठ ने कहा कि इन सब पर निचली अदालत, उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत पहले ही विचार कर चुकी है। सिंह ने आरोपियों को गिरफ्तार करने और उनकी शिनाख्त परेड की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाये और कहा कि मीडिया का दबाव अभी भी है। इस संबंध में उन्होंने हाल ही में तेलंगाना में सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोपियों की मुठभेड़ का भी जिक्र किया। 
इससे पहले, दिल्ली सरकार की ओर से अदालत में याचिका का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनमें ‘‘मानवता रोती’’ है और यह मामला उन्हीं में से एक है। मेहता ने कहा था, ‘‘ कई ऐसे अपराध होते हैं जहां भगवान बच्ची (पीड़िता) को ना बचाने और ऐसे दरिंदे को बनाने के लिए शर्मसार होते होंगे। ऐसे अपराधों में मौत की सजा को कम नहीं करना चाहिए। ’’ उन्होंने यह भी कहा कि जो होना तय है उससे बचने के लिए निर्भया मामले के दोषी कई प्रयास कर रहे हैं और कानून को जल्द अपना काम करना चाहिए। 
वहीं, दोषी की ओर से पेश हुए वकील ए. पी सिंह ने कहा था कि दिल्ली-एनसीआर में वायु और जल प्रदूषण की वजह से पहले ही लोगों की उम्र कम हो रही है और इसलिए दोषियों को मौत की सजा देने की कोई जरूरत नहीं है।
दक्षिण दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 की रात में चलती बस में छह व्यक्तियों ने 23 वर्षीय छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी करके सड़क पर फेंक दिया था। निर्भया की बाद में 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। 
इस सनसनीखेज अपराध के सिलसिले में पुलिस ने छह आरोपियों को गिरफ्तार किया था। इनमें से एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य आरोपी नाबालिग था। इस नाबालिग आरोपी पर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष मुकदमा चला था और उसे तीन साल तक सुधार गृह में रखा गया था। 

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