सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के दो मुजरिमों की क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मौत की सजा पाने वाले दोषी विनय शर्मा और मुकेश कुमार की क्यूरेटिव याचिकाओं पर चैंबर में विचार के बाद उन्हें खारिज कर दिया। बता दें कि क्यूरेटिव याचिका किसी व्यक्ति को उपलब्ध अंतिम कानूनी विकल्प है।
पांच न्यायाधीशों की यह सर्वसम्मत राय थी कि इन दोषियों की क्यूरेटिव याचिकाओं में कोई दम नहीं है। पीठ ने अपने आदेश में कहा, “मौत की सजा के अमल पर रोक के लिये आवेदन भी अस्वीकार किया जाता है। हमने सुधारात्मक याचिकाओं और संबंधित दस्तावेजों का अवलोकन किया है। हमारी राय में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य के मामले में 2002 के फैसले में इस न्यायालय द्वारा प्रतिपादित मानकों के दायरे में इसमें कोई मामला नहीं बनता है। क्यूरेटिव याचिकायें खारिज की जाती हैं।” न्यायाधीशों की इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल थे।
पीड़िता की मां दिया ये बयान
पीड़िता की मां आशा देवी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, ‘मेरे लिए बहुत बड़ा दिन है। मैं पिछले 7 सालों से संघर्ष कर रहा थी। लेकिन सबसे बड़ा दिन 22 जनवरी होगा जब उन्हें (दोषियों को) फांसी दी जाएगी।’
दोषियों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे दी जाएगी फांसी
बता दें कि दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने सात जनवरी को इस मामले के चारों मुजरिमों को 22 जनवरी को सवेरे सात बजे तिहाड़ जेल में मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के लिए आवश्यक वारंट जारी किया था। इसके बाद, नौ जनवरी को विनय और मुकेश ने सुधारात्मक याचिका दायर की थी। दो अन्य दोषियों अक्षय कुमार सिंह और पवन गुप्ता ने अभी तक सुधारात्मक याचिका दायर नहीं की है।
ये है पूरा मामला
दक्षिण दिल्ली में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात में चलती बस में छह दरिंदों ने 23 वर्षीय छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद बुरी तरह से जख्मी हालत में पीड़िता को सड़क पर फेंक दिया था। इस छात्रा की बाद में 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर के एक अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी।
इस सनसनीखेज अपराध में शामिल एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य आरोपी नाबालिग था और उसके खिलाफ किशोर न्याय कानून के तहत कार्यवाही की गई थी। इस नाबालिग को तीन साल तक सुधार गृह में रखा गया था।
शेष चार आरोपियों को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनायी थी, जिसकी पुष्टि हाई कोर्ट ने कर दी थी। इसके बाद, मई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखते हुये उनकी अपील खारिज कर दी थी। कोर्ट ने बाद में इन दोषियों की पुनर्विचार याचिकायें भी खारिज कर दी थीं।