नई दिल्ली : 13 दिसंबर 2001 इतिहास का वह काला दिन जब आतंकियों ने लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानी देश की संसद पर आतंकी हमला किया था। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के इस आतंकी हमले में दिल्ली पुलिस केेे पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और दो सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे। इस हमले के बाद संसद की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। संसद की सुरक्षा अब तीन स्तरीय है। जिसे भेद पाना नामुमकिन है।
पहले स्तर की सुरक्षा दिल्ली पुलिस और अत्याधुनिक हथियारों से लैस उसके कमांडो के हाथ में है। दूसरे स्तर की सुरक्षा व्यवस्था सीआरपीएफ के जवानों के हाथ में है। अंत में तीसरे स्तर की सुरक्षा व्यवस्था वॉच एंड वार्ड के हाथों में है। दिल्ली पुलिस व सीआरपीएफ के जवान संसद के बाहरी स्तर की सुरक्षा व्यवस्था को संभालते हैं। जबकि संसद के अंदर की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा वॉच एंड वार्ड के जवानों के हाथ में है।
संसद के हर मार्ग पर खुफिया निगाहें… संसद की ओर आने वाली या फिर इसे जोड़ने वाली हर सड़क पर खुफिया एजेंसियों की पैनी निगाहें रहती हैं। दिल्ली पुलिस ने संसद भवन के चारों और बाहरी हिस्से में सीसीटीवी कैमरे का जाल बिछाया हुआ है जिन्हें दिल्ली पुलिस मॉनिटरिंग करती है। इसके अलावा संसद भवन के पास दिल्ली पुलिस की तीन क्विक रिस्पांस टीम। पराक्रम वैन और तीन पीसीआर तैनात रहती हैं।
संसद के सत्र के दौरान इस सुरक्षा व्यवस्था को और बढ़ा दिया जाता है। मुख्य जगहों पर अतिरिक्त स्नाइपर भी तैनात रहते हैं। इसके साथ न दिखने वाला सुरक्षा कवर भी बढ़ा दिया जाता है। किसी भी अप्रिय स्थिति को रोकने के लिए आतंक निरोधी दस्ते लगातार औचक निरीक्षण करते रहते हैं।
सुरक्षा को अभेद्य करने में 100 करोड़ खर्च
संसद की सुरक्षा को अवैध करने के लिए करीब सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए। यह रुपया कई उच्च तकनीक वाले उपकरण जैसे बुम बैरियर्स और टायर बस्टर्स, सुरक्षित संचार के लिए जीपीएस युक्त टेट्रा के 300 हैंडसेट। बाहरी क्षेत्र में इलेक्ट्रिक बाड़ा, वेरीकेट मेटल डिटेक्टर, पैनिक अलार्म आदि लगाने में खर्च किया गया।
संसद के अंदर की सुरक्षा का जिम्मा वॉच एंड वार्ड पर है। वाच एंड वार्ड के जवान सीधे लोकसभा व राज्यसभा स्पीकर के नीचे काम करते हैं। इसके जवान सीधे सीआरपीएफ और दिल्ली पुलिस के बीच आपसी तालमेल के साथ काम करते हैं। तीनों एजेंसियों के बीच आपसी तालमेल होना भी सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। वाच एंड वार्ड का आपसी कम्युनिकेशन के लिए खुद का सेटअप है।
अगर अब आतंकी संसद की ओर आंख उठाकर भी देखते हैं तो उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी। गौरतलब है कि 13 दिसंबर की सुबह सफेद रंग की एंबेसडर कार से आए आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर पूरे संसद भवन को हिला कर रख दिया था। हमारे बहादुर जवानों के हाथों आतंकियों को मुंह की खानी पड़ी थी।
अफजल गुरु को 2013 में फांसी
भारत की संसद पर हमला करने की हिमाकत जैश और लश्कर के आतंकियों ने की थी। आतंकी पूरी तैयारी के साथ आए थे और उन्होंने फर्जी आईडी कार्ड के जरिये संसद परिसर में प्रवेश किया था। अफजल गुरु समेत 4 लोग हमले के दोषी करार हुए थे। इनमें से अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी।