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AIIMS में दिव्यांगों को नहीं मिल रहा उचित आरक्षण, दिल्ली HC ने केंद्र से मांगा जवाब

याचिका में दावा किया गया है कि दिव्यांगों के अधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र (यूएनसीआरपीडी) के मुताबिक सदस्य देशों के लिए समावेशी शिक्षा को सैद्धांतिक रूप से लागू करना बाध्यकारी है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है जिसमें दावा किया गया है कि प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) परास्नातक पाठ्क्रम में दिव्यांगों को उचित आरक्षण नहीं दे रहा है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायाधीश सी हरी शंकर की पीठ ने सामाजिक न्याय एवं स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी कर गैर सरकारी संगठन की ओर से दायर जनहित याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। 
यह याचिका गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘प्रहरी सहयोग एसोसिएशन’ की ओर से अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने दायर की है। इसमें उन्होंने दावा किया है कि एम्स समावेशी शिक्षा के सिद्धांत को आत्मसात करने में नाकामयाब रहा है क्योंकि 2018-19 के लिए जारी विज्ञापन में परास्नातक की 435 सीटों में केवल एक सीट दिव्यांगों को दी गई है जबकि कानूनी रूप से पांच फीसदी सीटे इस श्रेणी के छात्रों को देने की बाध्यता है। 
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बंसल ने कोर्ट को बताया कि यह दिव्यांगों के अधिकार कानून 2016 के उल्लंघन जैसा है। याचिका में दावा किया गया है कि दिव्यांगों के अधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र (यूएनसीआरपीडी) के मुताबिक सदस्य देशों के लिए समावेशी शिक्षा को सैद्धांतिक रूप से लागू करना बाध्यकारी है। एनजीओ ने कोर्ट से मांग की है कि वह एम्स से रिपोर्ट तलब करे जिसमें दिव्यांगों को कानून के तहत समावेशी शिक्षा मुहैया कराने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी हो। 
याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि परास्नातक सत्र में दिव्यांगों को आरक्षण देने के लिए वह निर्देश दे। इसके साथ ही दिव्यांगों के लिए आरक्षित सीटें जो जनवरी 2018, जुलाई 2019 और जनवरी 2019 के सत्र खाली रह गई हैं उन्हें भरने के लिए एम्स को विज्ञापन निकालने का निर्देश दे। 

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