नई दिल्ली : संविधान में लिखित अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी जिस पुलिस महकमे पर है, उसी पर पत्रकारिता के अधिकारों के हनन का आरोप लग रहा है। महिला पत्रकार के साथ पुलिसकर्मी द्वारा छेड़खानी, विरोध प्रदर्शन कवर कर रही पत्रकार का कैमरा संदिग्ध परिस्थितियों में गायब हो जाने से स्पष्ट संदेश जा रहा है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ स्वतंत्रता से काम नहीं कर पा रहा है। इन्हीं मुद्दों को पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक तक पहुंचाने के लिए पत्रकारों ने पुलिस मुख्यालय का घेराव किया, लेकिन करीब तीन घंटों की मशक्कत के बाद पुलिस आयुक्त उनको आश्वासन देने के लिए नहीं पहुंचे। इस बीच जब विशेष पुलिस आयुक्त व प्रवक्ता दीपेंद्र पाठक मीडिया कर्मियों से बातचीत के लिए पहुंचे, तो फोटोग्राफरों ने सांकेतिक विरोध का अनोखा तरीका अपनाया और अपने कैमरों को पुलिस विशेष आयुक्त को सौंप दिया।
पत्रकारों ने यह संदेश दिया कि पुलिस फोटोग्राफरों के कैमरे बार बार छीन रही है और अब वह एक बार में ही सभी कैमरों को अपने पास जब्त कर ले। इससे पहले पुलिस उपायुक्त व पीआरओ मधुर वर्मा ने भी पत्रकारों से बातचीत करने की कोशिश की लेकिन पत्रकारों ने साफ तौर पर उनसे बातचीत करने से इंकार कर दिया। पत्रकारों की मांग थी कि वह दिल्ली कैंट एसएचओ के खिलाफ न सिर्फ मामला दर्ज करें, बल्कि जिस पत्रकार का कैमरा कथित तौर पर गायब हुआ है, उस मामले में भी उचित कार्रवाई की जाए। करीब दो घंटे बाद मीडिया से बातचीत के लिए पहुंचे विशेष आयुक्त दीपेंद्र पाठक ने बताया कि पुलिस ने महिला फोटो पत्रकार के साथ छेड़छाड़ मामले में सतर्कता शाखा की जांच का आदेश दिया है जो रविवार तक मामले में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।
पुलिस सतर्कता शाखा की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेगी। वहीं पुलिस सूत्रों के अनुसार, महकमे में शनिवार देर शाम तक फोटो पत्रकार से कैमरा छीने जाने के मामले में एफआईआर दर्ज होने के कयास चलते रहे, हालांकि एफआईआर की धाराओं पर निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। हालांकि पुलिस ने शुक्रवार शाम की घटना में दंगे की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस अभी स्पष्ट तौर पर यह मानने से इंकार कर रही है कि पत्रकार का कैमरा पुलिस की टीम ने छीना है।
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