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निजी स्कूल बढ़ा रहे नौनिहालों पर बोझ

वरिष्ठ अधिकारी मोटे कमीशन के लालच में इन निजी स्कूलों पर कार्रवाई नहीं करते। वहीं दूसरी ओर सम्पूर्ण प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी भी जगजाहिर है।

जबलपुर : निजी प्रकाशकों से मिलने वाले मोटे कमीशन की लालच में निजी स्कूल मासूमों के नाजुक कंधों पर बस्ते का बोझ बढ़ाते रहे और शिक्षा विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। अब जब आधा शैक्षणिक सत्र बीत गया है, तब शिक्षा विभाग ने बस्ते के बढ़ते वजन की सुध ली है। इसी कड़ी में राज्य शिक्षा केन्द्र प्रदेश स्तर पर सरकारी और निजी स्कूलों में पहली से दसवीं कक्षा तक के स्कूली बच्चों का वजन करवा कर जांच रिपोर्ट बुलवा रहा है। राज्य शिक्षा केन्द्र के निर्देश पर जिले में रेंडम तौर पर बस्ते के वजन की जांच करने पहुंचे अधिकारी उस वक्त भौचक रह गए, जब इलेक्ट्रॉनिक तराजू से तौल कराने पर पहली, दूसरी कक्षा के बस्तों का वजन 1 से 2 किलो की बजाए 3.5 किलो से ज्यादा निकला। वहीं कक्षा छठवीं से दसवीं तक का वजन 8 से 10 किलो तक निकला। जबकि गाइडलाइन के हिसाब से यह वजन 6 किलो से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

राज्य शिक्षा केन्द्र के निर्देश पर जिला समन्वयक परियोजना अधिकारी (डीपीसी) ने ब्लॉक को-आर्डिनेटर (बीआरसी), जनशिक्षकों से 3 निजी स्कूल और 2 सरकारी स्कूलों के बच्चों के बस्ते का वजन मापा। इसके लिए स्कूल की पास की दुकानों से इलेक्ट्रॉनिक तराजू बुलवा कर बस्ते का वजन लिया गया। जिसमें कापी, किताब के अलावा टिफिन, कम्पास बाक्स, पानी की बोतल आदि का भी वजन लिया गया। रेंडम तौर पर जिले के 9 ब्लॉकों में बीआरसी स्तर पर कराई गई जांच रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों में बच्चों के बस्ते का वजन दो से तीन गुना ज्यादा निकला। पहली से दूसरी कक्षा के बस्ते का वजन 1 से 2 किलो की जगह 3.5 किलो मिला। वहीं तीसरी-चौथी का 3 किलो की जगह 5 किलो तक निकला। इसमें टिफिन, पानी की बोतल का वजन ही करीब 800 से एक किलो पाया गया। वहीं कुछ निजी स्कूलों में छठवीं से दसवीं कक्षा तक के बच्चों का वजन 8 से 9 किलो तो कुछ सीबीएसई स्कूलों में 10 किलो से अधिक निकला।

यही नहीं जिला प्रशासन बच्चों के परिवहन में लगे स्कूलों वाहनों का किराया तय करने में भी फिसड्डी रहा। लगातार हो रही बैठकों के बावजूद भी प्रशासन स्कूल वाहनों का किराया तय नहीं कर पाया है। यह हाल राजधानी भोपाल समेत प्रदेश भर के स्कूलों का भी है। जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाईन का पालन कराने में शिक्षा विभाग अमूमन जिला प्रशासन भी नाकाम रहा है। इसका दूसरा पहलू है कि विभाग में बैठे वरिष्ठ अधिकारी मोटे कमीशन के लालच में इन निजी स्कूलों पर कार्रवाई नहीं करते। वहीं दूसरी ओर सम्पूर्ण प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी भी जगजाहिर है।

खेलकूद गतिविधियां हो, पिकनिक हो, फैन्सी ड्रेस काम्पटीशन हो, एनुअल फंक्शन हो, तो कहीं विभिन्न संस्थानों द्वारा कराई जाने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के नाम पर भारी-भरकम राशि बच्चों से दबाव बनाकर ली जाती है। हालांकि इस संबंध में ढेरों शिकायतें जिला शिक्षा अधिकारियों को की गई, लेकिन इसका कोई स्थाई समाधान आज तक नहीं निकला।

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