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शहीद के अंतिम दर्शन को उमड़ा हुजूम

शहीद राजेंद्र सिंह का अंतिम संस्कार आज पूरे सैन्य सम्मान के साथ रामेश्वर घाट पर किया गया, उनके पिता चंद्र सिंह ने उन्हें मुखाग्नि दी।

पिथौरागढ़ : शहीद राजेंद्र सिंह का अंतिम संस्कार आज पूरे सैन्य सम्मान के साथ रामेश्वर घाट पर किया गया, उनके पिता चंद्र सिंह ने उन्हें मुखाग्नि दी। ये मंजर देखकर शहीद की अंतिम यात्रा में पहुंचे लोगों की आंखें भर आईं। 23 वर्षीय राजेंद्र अपने परिवार के इकलौते बेटे थे। शहीद राजेंद्र सिंह का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव बड़ेनाकुंड पहुंच गया है। शहीद का पार्थिव शरीर दोपहर हेलीकॉप्टर से पिथौरागढ़ आर्मी हेडक्वार्टर के हेलीपैड पर लाया गया, जहां सेना और प्रशासन के अधिकारियों के साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी उन्हे श्रद्धांजलि दी।

इस मौके पर सीएम ने कहा कि उत्तराखंड के जवान हर मोर्चे पर देश सेवा के लिए तत्पर हैं। सीएम ने ब्रिगेडियर हेडक्वार्टर में शहीद राजेंद्र को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद पत्थरबाजों द्वारा किये गये हमले की निंदा भी की। पत्थरबाजों पर पैलेट गन चलाने में मानवाधिकार कार्यकर्ता कोर्ट तक पहुंच जाते हैं इसी का खामियाजा है कि आज प्रदेश ने अपने एक और लाल को खो दिया। आर्मी हैलीपेड से रवाना होकर शहीद का पार्थिव शरीर उनके गांव बड़ेनाकुंड लाया गया।

शहीद के अंतिम दर्शन के लिए भारी तादात में हुजूम उमड़ा। शहीद राजेंद्र का शव जैसे ही उनके घर पहुंचा परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। घर का इकलौता बेटा खोने का गम उनकी आंखों में साफ दिख रहा हैं। राजेंद्र के परिजनों ने भी पत्थरबाजों द्वारा किये गये इस हमले की निंदा की है। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार को भी पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन लेना चाहिए।

पिता की ख्वाहिश पर राजेंद्र ने रद्द की थी छुट्टियां

जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए राजेंद्र सिंह बुंगला घर परिवार के साथ दिवाली मनाने के लिए छुट्टी पर आने वाले थे ।लेकिन इस घटना ने उनके परिवार की सारी खुशियां छीन लीं। शहीद के पिता चंद्र सिंह बुंगला ने बताया कि उनका बेटा सितंबर में ही घर आने वाला था लेकिन उनकी एक ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उसने अपनी छुट्टी रद्द कर दी थी। दरअसल, शहीद के पिता चंद्र सिंह ने बेटे को कहा था कि वो दिवाली पर ही घर आये ताकि पूरा परिवार एक साथ त्योहार मना सके लेकिन उन्हें क्या पता था कि दीपावली से पहले ही उनके घर का दीपक बुझ जाएगा। उनके पिता को अपनी इस ख्वाहिश का जिंदगी भर अफसोस रहेगा। उनका मानना है कि अगर बेटा नवंबर में ही आ जाता तो शायद वो इस वक्त घर पर ही होता।

भैय्यादूज की तैयारियों में जुटी थी बहने
राजेंद्र की तीनों बहनें भैय्यादूज की तैयारियों में जुटी हुई थी। लेकिन भाई को तिलक लगाने का बहनों का सपना चकनाचूर हो गया। अब भाई के शव के आने की खबर से परिवार में सन्नाटा पसरा हुआ है। शहीद की मां मोहनी देवी के आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। वो बार-बार बेसुध होकर कहती हैं ‘राजू तू कां गये’ ‘तू अब कब घर आले’. इतना कहकर वो बार-बार बेहोश हो जाती हैं।

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