नई दिल्ली : लाल किले पर 22 दिसंबर वर्ष 2000 को हुए गोलीकांड जिसमें सातवीं राजपुताना राइफाइल के तीन जवान शहीद हो गए थे, उस बात को भले ही 19 बरस बीत गए हों। मगर कुछ लोगों को जहन में आज भी वो दिन ऐसा है जैसे कल ही की बात हो। जी हां उन्हीं में से एक हैं, इस केस के जांच अधिकारी रहे दिल्ली पुलिस से बतौर इंस्पेक्टर रिटायर्ड सुरेंद्र सड। वह उन दिनों स्पेशल सेल में तैनात थे। इस केस की जांच उन्हें के पास थी।
उन्होंने बताया कि उन्होंने इस पूरे कांड को बहुत करीब से देखा है। अपराधियों के खिलाफ सबूत जुटाए थे। बावजूद इसके दोषी आतंकी मुहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक को फांसी की सजा होने के बाद भी अब तक फांसी नहीं दी गई है। आखिर ये कैसी फांसी कि वो जेल में बैठ रोटी खा रहा है।
सड का कहना है कि कि हमले में शहीद हुए जवानों की आत्मा हमसे पूछती है कि आखिर हमें इंसाफ कब मिलेगा। बता दें कि 22 दिसंबर 2000 को हुए इस हमले में तीन जवानों के साथ कई आतंकी भी मारे गए थे। उस दौरान के इंस्पेक्टर सुरेंद्र सड और उनकी टीम ने अशफाक को दबोच लिया था। उसके खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाए गए थे। जिस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त 2011 को अशफाक को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन अब तक उसे फंदे पर लटकाया नहीं गया है।
बता दें कि गोली कांड के दोषी लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी मुहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक को फांसी की सजा हुई थी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट खालिस्तान आतंकी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर के अलावा राजीव गांधी के तीन हत्यारों और वीरप्पन के चार सहयोगियों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल चुका है। सड का कहना है कि क्या अब इस बात का इंतजार किया जा रहा है कि इस दोषी को भी कोई हवाई जहाज हैक कर के छुड़ा लिया जाए।