नई दिल्ली : दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में इस समय अनिश्चिता का माहौल बना हुआ है। एक तरफ कहा जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित की तबीयत खराब होने के कारण अस्पताल में भर्ती हैं, तो दूसरी तरफ प्रदेश के कई वरिष्ठ नेताओं के भाजपा में शामिल होेने की चर्चा आम हो चली है। यही नहीं प्रदेश में गुटबाजी भी चरम पर है। एक तरफ प्रदेश प्रभारी पीसी चाको हैं तो दूसरी तरफ शीला दीक्षित। दोनों गुट एक-दूसरे की खिलाफत करते आसानी से देखे जा सकते हैं। पार्टी के भीतर अनिश्चिता कुछ इसलिए भी है कि राहुल गांधी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है, नए अध्यक्ष का चयन नहीं हो पा रहा है।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की निगाहें उधर भी लगी हैं। शीला एंड कंपनी ने ब्लॉक समीतियां भंग कर दी हैं, लेकिन नई ब्लॉक समितियां नहीं बनी। दूसरे जिला समितियों को भी भंग करने की तैयारी थी, लेकिन जबतक राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित नहीं हो जाते, तब तक कुछ होने वाला नहीं। बताया जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित पिछले एक हफ्ते से बीमार चल रही हैं और एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। जब शीला दीक्षित को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था तभी दिल्ली में पहली बार अध्यक्ष के साथ-साथ तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए गए थे, लेकिन शीला के बीमार होते ही तीन कार्यकारी अध्यक्षों में से दो कार्यकारी अध्यक्ष भी गायब हो गए हैं।
राजेश लिलोठिया जरूर प्रदेश कार्यालय में दिख जाते हैं, बाकी हारुन युसूफ व देवेन्द्र यादव दिखाई नहीं देते हैं। वैसे उनके शुभचिंतक यह कह कर जरूर उन्हें बचाते रहते हैं कि यहां आकर क्या करेंगे, फील्ड में रहते हैं। यानी कुल मिलाकर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस शीला के बीमार होते ही वेंटीलेटर पर पहुंच गई है। इन्हें ऑक्सीजन की सख्त जरूरत है। विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, लेकिन कांग्रेस की तैयारियां जमीन पर बिखरी पड़ी हैं। प्रदेश कार्यालय में न तो बैठकें हो रही हैं न ही ब्लॉक अध्यक्षों को घोषित करने की प्रक्रिया ही आगे बढ़ रही है। शीला के न होने से प्रदेश कांग्रेस ठप हो गई है। तीनों ही कार्यकारी अध्यक्षों में सामंजस्य नहीं है।
जब ब्लॉक समितियों को भंग किया गया था तब भी कार्यकारी अध्यक्ष हारुन युसूफ ने बयान दिया था कि उन्हें मालूम ही नहीं की ब्लॉक समितियां भंग कर दी गई हैं। ऐसे में नई समितियां बन नहीं रही, पुराने वाले ब्लॉक अध्यक्ष काम नहीं कर रहे हैं। जिलाध्यक्षों में बैचेनी है कि उनका क्या होगा? ब्लॉक अध्यक्षों के चयन के लिए विधानसभा स्तर पर ऑबजर्बर नियुक्ति किए जाने थे, लेकिन अध्यक्ष के न होने से वह भी लटक गया है। अब जब तक ऑबजर्बर नहीं घोषित होंगे, तब तक ब्लॉक अध्यक्ष नहीं बनेंगे। लेकिन उससे पहले शीला दीक्षित को दफ्तर आना ज्यादा जरूरी है, लेकिन उनकी तबीयत खराब है। फिलहाल कांग्रेस में सब भगवान भरोसे चल रहा है।