केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के अब तीन महीने होने को हैं। ऐसे में किसानों के प्रमुख प्रदर्शन स्थलों- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर भीड़ अब कम होती दिखाई दे रही है, लेकिन किसान नेता अपने आंदोलन को पहले से ज्यादा मजबूत बता रहे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर लंगरों और टेंटों के खाली होने के बावजूद, किसान नेता जोर देकर कह रहे हैं कि आंदोलन में शामिल होने के लिए अधिक लोग जुट रहे हैं।
भीड़ केवल एक स्थान से दूसरे स्थानों पर जा रही है, ताकि आंदोलन को विकेंद्रीकृत किया जा सके। क्रांतिकारी किसान यूनियन (पंजाब) के अवतार सिंह मेहमा ने मंगलवार को कहा, ‘‘भीड़ बिल्कुल भी कम नहीं हो रही है। हम बस आंदोलन को विकेंद्रीकृत करने और अन्य राज्यों के गांवों तथा जिलों में लोगों को जुटाने की कोशिश कर रहे हैं, न कि केवल पंजाब और हरियाणा में।’’ उन्होंने कहा, अगर पंजाब में लहर पैदा करने में कुछ महीने लगे, तो पूरे देश में ऐसा प्रभाव पैदा करने में थोड़ा और समय लगेगा, लेकिन हमारे आंदोलन का वेग कम नहीं हो रहा है। वास्तव में, हमारे नजरिये से, यह हर दिन और मजबूत ही हो रहा है।उन्होंने कहा कि कई किसान अपने घरों से वापस आ रहे हैं।
वे थोड़े-थोड़े समय पर घर जाते रहते हैं और फिर वापस आ जाते हैं क्योंकि उन्हें अपने खेतों के काम को भी संभालना होता है, लेकिन इस सब के बावजूद सीमाओं पर प्रदर्शनकारियों की ताकत कमोबेश स्थिर ही रही है। 18 फरवरी के चक्का जाम के बाद भीड़ बढ़ने की उम्मीद है। मेहमा ने कहा, संयुक्त किसान मोर्चा प्रदर्शनकारियों को घर के काम का प्रबंधन करने की अनुमति देते हुए दिल्ली की सीमाओं पर संख्या को स्थिर रखने के लिए रणनीति बना रहा है, लेकिन सीमाओं पर लोगों की संख्या 18 फरवरी के बाद ही बढ़ेगी।’’
उन्होंने कहा, बहुत जल्द, हम देश भर के किसानों को दिल्ली में पैदल मार्च में शामिल होने के लिए भी बुलाएंगे।भारतीय किसान यूनियन एकता (दकौंदा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा, ‘‘महापंचायत के लिए जब मैं करनाल गया, तो सिंघू से कई लोग मेरे साथ गए और वे फिर वापस आ गए। हम राजस्थान के सीकर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों से भी लोगों को जुटाने जा रहे हैं, लेकिन यह सिर्फ एक अस्थायी स्थिति है। 18 फरवरी के बाद यहां फिर से भीड़ पूरी तरह भरी होगी।’’ बीकेयू (लखोवाल) के महासचिव परमजीत सिंह ने कहा, ‘‘लोग महापंचायतों का हिस्सा बनना चाहते हैं, खासकर जब राकेश टिकैत जैसे नेता बोल रहे हैं, इसलिए वे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए विशिष्ट स्थानों पर जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे वापस जा रहे हैं। वे बस एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं।