नई दिल्ली : दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (डीपीसीसी) के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा से दिल्ली कांग्रेस को जो उम्मीदें थीं, वह पूरी नहीं हो पाईं। दिल्ली में सुभाष चोपड़ा गुटबाजी को रोकने में असफल रहे हैं। पहले तो दो ही गुट थे लेकिन अब तीन-तीन गुट हो गए हैं। सभी की अपनी अपनी ढपली, अपना-अपना राग है। यानि कि सभी अलग-अलग और अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन के बाद तीन महीने तक प्रदेश अध्यक्ष को लेकर खूब राजनीति हुई। प्रदेश अध्यक्ष के लिए दर्जनभर नेताओं के बीच सुभाष चोपड़ा को चुना गया। उम्मीद की गई थी सुभाष चोपड़ा ही ऐसे नेता हैं जो पूर्व में अध्यक्ष भी रह चुके हैं और दिल्ली में सभी कांग्रेसियों से वाकिफ हैं, वो गुटबाजी को खत्म कर हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस को जमीन पर ले आएंगे, लेकिन दो महीने के करीब बीत चुके हैं, गुटबाजी बरकरार है।
इसके दूसरी तरफ सुभाष चोपड़ा ने केन्द्र की भाजपा के खिलाफ जन आक्रोश रैली का ऐलान किया है, जिसके तहत हर जिले में प्रदर्शन किए जा रहे हैं। लेकिन इस प्रदर्शन में जिस तरह का रुझान नेताओं को बीच देखने को मिल रहा है, उससे साफ है कि वे कांग्रेस के भीतर की राजनीति खत्म करने में वह असफल रहे हैं। सुभाष चोपड़ा गुट के कांग्रेसियों का कहना है कि लम्बे समय के बाद प्रदर्शन में इतने लोग इकट्ठा हो रहे हैं।
लेकिन साथ ही यह भी स्वीकारते हैं कि यह सब आने वाले विधानसभा चुनाव के कारण है। जो नेता अपने समर्थकों के साथ पहुंच रहे हैं सब टिकट की चाह रखने वाले हैं। बहरहाल, इन प्रदर्शनों बैठकों से प्रदेश अध्यक्ष पीसी चाको पूरी तरह से गायब हैं। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश प्रभारी की पहले शीला दीक्षित से नहीं बनी, अब सुभाष चोपड़ा ने भी चाको को अपने से दूर ही रखा।
कहा जा रहा है कि पीसी चाको को न तो बैठकों में बुलाया जाता है न ही धरने-प्रदर्शन में। जबकि इससे पहले लोकसभा चुनावों के दौरान पीसी चाको दिल्ली की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय थे। लेकिन जब से सुभाष चोपड़ा अध्यक्ष बने उन्हें तवज्जो देना बंद कर दिया गया। सूत्रों का कहना है कि शीला दीक्षित के कार्यकाल में जिन अजय माकन और चाको का गुट सक्रिय था, वह अभी भी पार्टी कार्यालय नहीं पहुंचते हैं।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। लेकिन कई मुद्दों पर अपना वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करते हैं। दूसरी तरफ जिस समय सुभाष चोपड़ा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, उसी दौरान कीर्ति आजाद को कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था। माना जा रहा था कि कांग्रेस इससे पूर्वांचलियों को साधेगी, लेकिन अब कीर्ति आजाद को भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी जा रही है।
सूत्र बताते हैं कि यही वजह है कि सुभाष चोपड़ा से नाराज कांग्रेस कीर्ति आजाद के खेमे में शामिल हो गए हैं। यही नहीं मीडिया को भी पार्टी से अलग अपनी बयानबाजी कर रहे हैं। पिछले कुछ प्रदर्शनों से कीर्ति आजाद जरूर दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उपस्थित सिर्फ दिखावा मात्र है, मंच पर उनको बहुत तवज्जो नहीं दी जा रही है।