सुप्रीम कोर्ट 25 वर्षीय अविवाहित महिला की उस याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने के लिए सहमत हो गया जिसे दिल्ली हाई कोर्ट ने सहमति से संबंध के कारण गर्भावस्था के 23वें सप्ताह में मेडिकल अबॉर्शन की अनुमति नहीं दी थी। हाई कोर्ट ने पिछले शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इसकी अनुमति देना वास्तव में भ्रूण हत्या के समान है।
महिला की तरफ से पेश हुए वकील ने प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ को बताया कि मामले के तथ्यों के मद्देनजर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। पीठ ने कहा, “हमें अभी कागजात मिले ही हैं। देखते हैं।”
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दिल्ली हाई कोर्ट ने 16 जुलाई को जारी हुए आदेश में 23 सप्ताह की गर्भवती महिला को अबॉर्शन की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा था कि अबॉर्शन कानून के तहत परस्पर सहमति से बने संबंध से ठहरे गर्भ को गिराने की इजाजत नहीं है। हाई कोर्ट ने हालांकि महिला की इस दलील पर केंद्र से जवाब मांगा कि अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भावस्था के मेडिकल अबॉर्शन की अनुमति नहीं देना भेदभावपूर्ण है।
याचिकाकर्ता 25 वर्षीय महिला ने हाई कोर्ट को बताया था कि उसके साथी ने उससे विवाह से इनकार कर दिया है। उसने कहा था कि बिना विवाह के बच्चे को जन्म देने से उसे मनोवैज्ञानिक पीड़ा के साथ-साथ सामाजिक लांछन का भी सामना करना पड़ेगा और वह मानसिक रूप से मां बनने के लिए तैयार नहीं थी।