नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अस्सिटेंट पंप ड्राइवर संतोष कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि किसी की सजा को अपील पर सुनवाई तक निलंबित करने का मतलब यह नहीं है कि उसको मिली सजा अब जारी नहीं रहेगी। जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि आपराधिक मामलों के लिए अदालती कार्रवाई झेल रहे किसी अपराधी को जमानत मिल जाती है या फिर अपील पर सुनवाई होने तक उसकी सजा को निलंबित कर दिया जाता है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसकी सजा खतम हो गई। बेंच ने दिल्ली जल बोर्ड के नौकरी से निकाले जाने के फैसले को सही करार दिया और याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाकर उसे हाईकोर्ट स्टाफ वेलफेयर फंड में चार हफ्तों में जमा करने का आदेश दिया।
ये है मामला… यूपी बुलंदशहर के कोतवाली देहात पुलिस ने संतोष कुमार के खिलाफ किसी घटनाक्रम में मामला दर्ज होने पर 2010 में गिरफ्तार किया था। उसे आईपीसी की धारा 363, 366, 368 और 376 के तहत उम्र कैद की सजा दी गई लेकिन उसकी अपील पर अपीलीय अदालत ने उसकी सजा को निलंबित कर दिया। इस बीच दिल्ली जल बोर्ड ने उसकी सेवा से उसे निकाल दिया।
अपनी सेवा बर्खास्तगी से दुखी होकर उसने औद्योगिक विवाद के तहत याचिका दाखिल की लेकिन श्रम अदालत ने उसकी अपील को इस वजह से खारिज कर दिया कि अनुशासनात्मक अथॉरिटी ने सभी मामलों पर गौर करने के बाद उसको दोषी पाते हुए उसकी सेवा से निकाला। अपनी सेवा को दोबारा बहाल करने के लिए ही उसने दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली जल बोर्ड के खिलाफ याचिका दायर की।
हाईकोर्ट का फैसला… जस्टिस रेखा पल्ली के समक्ष याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि जब उसकी सजा को निलंबित कर दिया गया है और उसे जमानत पर रिहा किया जा चुका है तो उसकी सेवा को दोबारा बहाल करने के लिए दिल्ली जलबोर्ड बाध्य है। याचिका में उसने कहा कि सजा का यह निलंबन दंडित करने के आदेश की तरह है। और इसका अर्थ यह हुुुआ कि सजा का अस्तिव अब नहीं है। इस पर ही दिल्ली जल बोर्ड के वकील रमीजुद्दीन राजा ने कहा कि किसी की सजा को निलंबित कर दिए जाने से उसकी सजा समाप्त नहीं हो जाती है।
इस तरह की सजा के तथ्यों और प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि अगर अनुशासनात्मक अथॉरिटी इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि जिस अपराध के लिए किसी सरकारी अधिकारी को सजा मिली है, वह अपराध ऐसा है कि उसको सेवा में रखना प्रथम दृष्टता अवांछनीय है।
तो अथॉरिटी नियमों के तहत उसे नौकरी से हटाने अधिकार रखती है। हाईकोर्ट ने कहा कि सजा निलंबित होने का यह मतलब नहीं कि अब उसकी सजा जारी नहीं रहेगी।