नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने गुरुवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बाहर शिक्षकों के हितों की रक्षा के लिए प्रदर्शन किया। इस दौरान देशभर के शिक्षकों ने अपना समर्थन देते हुए इस प्रदर्शन में शामिल हुए। अपने अधिकारों को लेकर सड़क पर उतरे शिक्षकों का कहना है कि सरकार लगातार शिक्षक और शिक्षा विरोधी नीतियां बनाकर आम जनों को शिक्षा को दूर रखना की साजिश रच रहे हैं। यही वजह है कि अब शिक्षकों को भी अपने अधिकार के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में शिक्षकों ने यूजीसी और एमएचआरडी के विरोध में जमकर नारे लगाए गए।
बड़ी संख्या में पहुंचे शिक्षकों की एक ही मांग थी कि एडहॉक पर पढ़ा रहे शिक्षकों को रेगुलर किया जाए। साथ ही नियुक्तियों में पारदर्शिता होनी चाहिए। लॉ फैकल्टी और डिपार्टमेंट आॅफ एजुकेशन में हुई नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए शिक्षकों का कहना है कि नियुक्ति के लिए यूजीसी ने जो फार्मूला बनाया है उसे छोड़कर सब कुछ चयन समिति की मर्जी पर छोड़ दिया गया है। फैकल्टी आॅफ लॉ में जुलाई अगस्त 2017 में 126 पदों के लिए इंटरव्यू हुआ था। अभी तक इस इंटरव्यू का निर्णय नहीं आया है, मगर इस सूची में पहले से पढ़ा रहे 84 एडहाक शिक्षकों में से आधे से अधिक बाहर कर दिए गए।
50 प्रतिशत से ज्यादा हैं एडहॉक टीचर्स …
दिल्ली विश्वविद्यालय से लेकर अन्य यूनिवर्सिटी ने 50 प्रतिशत से ज्यादा शिक्षक एडहॉक पर हैं। पिछले कई सालों एक ही पद पर काम कर रहे शिक्षक अपनी प्रमोशन का इंतजार कर रहे हैं। डूटा अध्यक्ष राहुल राय ने कहा कि औसतन 5 साल और अधिकतम 15 साल से एडहॉक पढ़ा रहे हैं शिक्षकों परमानेंट नौकरी पर रखना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। आलम यह हो गया है कि यूजीसी ने कई सारे शिक्षकों को मिलने वाले फंड में भी कटौती कर दी गई है। इस मुद्दे को लेकर हम यूजीसी के पास भी गए, लेकिन उन्होंने हमें मिलने का समय नहीं दिया। मजबूरन हमें सड़कों पर आना पड़ रहा है।
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