राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कोरोना के असाधारण स्थिति को देखते हुए महिलाओं के मानवाधिकारों केन्द्रीय मंत्रालयों तथा विभागों को परामर्श जारी किया है। आयोग ने कोरोना महामारी के कारण देश में उत्पन्न स्थिति को देखते हुए समाज के वंचित, कमजोर और हासिये पर रहने वाले वर्ग के मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए हाल ही में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था।
इस समिति ने कोरोना महामारी के प्रभावों का मूल्यांकन करने के बाद महिलाओं के मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों के बारे में अपनी सिफारिशें आयोग को सौंपी थी। इन सिफारिशों के आधार पर आयोग ने यह परामर्श जारी किया है। आयोग ने इन मंत्रालयों तथा विभागों से परामर्श में शामिल की गयी सिफारिशों को लागू करने का अनुरोध किया है और इस बारे में उसे अनुपालन रिपोर्ट देने को भी कहा है।
विशेषज्ञों की समिति में नागरिक समाज के संगठनों के प्रतिनिधि, स्वतंत्र विशेषज्ञ और विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों के प्रतिनिधि शामिल हैं। समिति से कहा गया था कि वह कोरोना महामारी के कारण वंचित और कमजोर वर्ग के लोगों के अधिकारों पर पड़ प्रभाव का मूल्यांकन कर अपनी रिपोर्ट दे।
समिति ने कहा है कि कोरोना महामारी के कारण उपजी परिस्थितियों में गत 27 फरवरी से लेकर 31 मई तक घरलू हिंसा के मामलों में ढाई गुना की बढोतरी हुई है। कोरोना महामारी के कारण लागू पूर्णबंदी के चलते यौन स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच में बाधा आयी। विशेष रूप से यौनकर्मियों को इसका ज्यादा खामियाजा उठाना पड़।
समिति ने मुख्य सिफारिशों में विशेष रूप से लिंग आधारित हिंसा का मामला उठाते हुए इसके पीडितों के लिए एक अंतरमंत्रालयी स्वास्थ्य प्रणाली बनाने को कहा है जो इन्हें चिकित्सा और कानूनी तथा मनोवैज्ञानिक सलाह दे सके। इन्हें दी जानी वाली सभी सेवाओं को अनिवार्य सेवा की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।
साथ ही महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए भी कहा गया है। इसके अलावा गर्भ निरोधक उपायों, सुरक्षित प्रसूति तथा गर्भपात के प्रावधान की भी बात कही गयी है। विस्थापित तथा असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए बिना दस्तावेज के सब्सिडी आधरित खाद्यान्न तथा मनरेगा के तहत 100 दिन के बजाय 200 दिन काम देने की भी सिफारिश की गयी है।