नई दिल्ली : स्टार्टअप को लेकर अब भी लोगों के बीच असमंजस बना हुआ है। उसी का नतीजा है कि केन्द्र सरकार ने 98 फीसदी स्टार्टअप कंपनियों को टैक्स बेनिफिट देने से इंकार कर दिया है। इस इंकार के पीछे तकनीकी कारण बताए गए हैं। सरकार को लगता है कि रिजेक्ट हुए स्टार्टअप टैक्स बेनिफिट की क्राइटेरिया पूरी नहीं करती है। इसकी वजह से उन्हें टैक्स बेनिफिट का फायदा नहीं दिया जा रहा है। मोदी सरकार ने देश में स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए टैक्स छूट का प्रावधान किया है। जिसके तहत एक अप्रैल 2016 के बाद गठित हुए स्टार्टअप को टैक्स बेनिफिट मिलता है। दिसंबर में हुए इंटरमिनिस्ट्रियल बोर्ड मीटिंग में 407 कंपनियों द्वारा भेजे गए प्रपोजल में से 401 के एप्लीकेशन रिजेक्ट किए गए हैं।
जानकारी के मुताबिक दिसंबर में हुई 21वीं इंटरमिनिस्ट्रियल बोर्ड में केवल 4 स्टार्टअप को टैक्स बेनिफिट के लिए सेलेक्ट किया गया है। जबकि 2 स्टार्टअप के एप्लीकेशन को अगली मीटिंग में फिर से रिव्यू किया जाएगा। इसके अलावा 401 स्टार्टअप के एप्लीकेशन को रिजेक्ट किया गया है। साथ ही मीटिंग में पहले से टैक्स बेनिफिट के लिए रिजेक्ट हो चुके 369 कंपनियों को स्टार्टअप का दर्जा बरकरार रखा गया है। सूत्रों के अनुसार, नियमों के अनुसार एक अप्रैल 2016 के बाद बनी कंपनियों को ही स्टार्टअप का दर्जा मिल सकता है। साथ ही ऐसी कंपनियां ही टैक्स बेनिफिट के लिए अप्लाई कर सकती है।
नियमों के प्रति कम जानकारी होने की वजह से कई कंपनियां एक अप्रैल 2016 से पहले गठित होने के बावजूद अप्लाई कर रही है। इसके अलावा स्टार्टअप बेनिफिट लेने के लिए फ्रॉड के भी मामले सामने आए हैं। इन वजहों से ही एप्लीकेशन रिजेक्शन बढ़ा है। स्टार्टअप इंडिया स्कीम के तहत स्टार्टअप कहलाने और उसके तहत टैक्स बेनिफिट जैसी फायदे लेने के लिए कंपनियां एप्लीकेशन देनी होती है। कंपनी के एप्लीकेशन को एक इंटर मिनिस्ट्रियल बोर्ड रिव्यू करता है।
जिसके आधार पर उसे स्टार्टअप का दर्जा और टैक्स बेनिफिट जैसे फायदे मिलते हैं। डीआईपीपी के तहत नवंबर में हुई बोर्ड मीटिंग मे इस बात का खुलासा हुआ है कि कई कंपनियां ऐसी हैं जो स्टार्टअप का दर्जा लेने के लिए पात्र नहीं है, फिर भी उन्हें उसका दर्जा मिल गया है। कई कंपनियों ने अपनी सब्सिडियरी बनाकर एक नई कंपनी को स्टार्टअप के रुप में रजिस्टर्ड कराया था। जिसमें भारतीय कंपनियों के साथ-साथ विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं। नियमों के अनुसार इस तरह से बनाई गई सब्सिडियरी कंपनी को स्टार्टअप का दर्जा नहीं मिल सकता है। इसका खुलासा होने के बाद उनके एप्लीकेशन रिजेक्ट किए गए ।
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– सुरेन्द्र पंडित