दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने साल 2017-18 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नागरिकों को हर महीने 20 हजार लीटर मुफ्त पानी मुहैया करने के लिए करीब 400 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी जबकि साल 2014-15 में यह राशि महज दो करोड़ रूपये ही थी।
बोर्ड ने प्रधान न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की एक खंडपीठ के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा गया है कि जब मुफ्त पानी योजना का पहली बार 2014-15 में ऐलान किया गया तो इसमें 1.88 करोड़ रूपये के खर्च हुये और साल 2017-18 में यह राशि बढ़कर 396.66 करोड़ रूपये हो गई।
यह हलफनामा अधिवक्ताओं ताजिंदर सिंह और अनुराग चौहान की दायर जनहित याचिका के प्रत्युत्तर में दायर किया गया है। इस याचिका में दिल्ली सरकार की मुफ्त पानी योजना को चुनौती दी गई है।
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याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि पानी बहुत तेजी से समाप्त होने वाला संसाधन है और इसे इतनी अधिक मात्रा में नि:शुल्क नहीं दिया चाहिये, खासकर तब जब शहर के कई इलाकों में पाइनलाइन नहीं है और वे टैंकरों से जलापूर्ति पर निर्भर हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि सब्सिडी की मात्रा बढ़ने की एक वजह उपभोक्ताओं की तादाद में इजाफा होना भी है। साल 2015 में ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या 5.60 लाख थी जो साल 2018 में करीब दोगुनी होकर 11.11 लाख हो गई। यह योजना घरेलू उपभोक्ताओं के लिए थी इसलिए कार्यशील पानी के मीटरों की संख्या में भी इजाफा हो गया।
याचिका में मांग की गई है कि दिल्ली सरकार के 25 फरवरी, 2015 को प्रत्येक घर को 20 हजार लीटर पानी मुफ्त देने के फैसले को रद्द किया जाए।
इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि ‘‘यह योजना बिना किसी उचित अध्ययन के लागू कर दी गई और दिल्ली में पानी की आपूर्ति, उत्पादन और पुर्नचक्रण के बारे में नहीं सोचा गया।’’