लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

धारा 377 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर SC में सुनवाई पूरी, फैसला बाद में 

NULL

नई दिल्ली :  उच्चतम न्यायालय ने सहमति से समलैंगिक यौनाचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई पूरी कर ली। न्यायालय इस पर फैसला बाद में सुनायेगा। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर चार दिन विस्तार से सुनवाई की। इन याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई शुरू हुयी थी। इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर , न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं। पीठ ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे अपने – अपने दावों के समर्थन में 20 जुलाई तक लिखित दलीलें पेश कर सकते हैं। इस मामले में दो अक्तूबर से पहले ही फैसला आने की संभावना है क्योंकि उस दिन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

धारा 377 में ‘‘ अप्राकृतिक अपराध का जिक्र है और कहता है कि जो भी प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत किसी पुरूष , महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है, उसे उम्र कैद , या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।’’ न्यायालय ने नृत्यांगना नवतेज जौहर , पत्रकार सुनील मेहरा , शेफ रितु डालमिया , होटल मालिक अमन नाथ , केशव सूरी और कारोबारी आयशा कपूर तथा आईआईटी के 20 भूतपूर्व और वर्तमान छात्रों की याचिकाओं पर सुनवाई की। इन याचिकाओं में परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है। यह मुद्दा सबसे पहले 2001 में गैर सरकारी संस्था नाज फाउण्डेशन ने दिल्ली उच्च न्यायालय में उठाया था।

उच्च न्यायालय ने सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुये इससे संबंधित प्रावधान को 2009 में गैर कानूनी घोषित कर दिया था। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने 2013 में उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त कर दिया था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकायें भी खारिज कर दी थीं। इसके बाद सुधारात्मक याचिका दायर की गयी जो अब भी न्यायालय में लंबित है। इस मामले पर 10 जुलाई को सुनवाई शुरू होते ही संविधान पीठ ने स्पष्ट किया था कि वह सुधारात्मक याचिकाओं पर गौर नहीं कर रही है और वह सिर्फ इस मामले में नयी याचिकाओं पर भी निार्य करेगी। इन याचिकाओं का एपोस्टालिक अलायंस आफ चर्चेज , कुछ अन्य गैर सरकारी संगठनों और सुरेश कुमार कौशल सहित कुछ व्यक्तियों ने विरोध किया था।

कौशल ने उच्च न्यायालय के 2009 के फैसले को भी शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। इन याचिकाओं पर सुनवाई के अंतिम दिन आज संविधान पीठ ने जोर देकर कहा कि यदि कोई कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो अदालतें कानून बनाने , संशोधन करने या उसे निरस्त करने के लिये बहुमत की सरकार का इंतजार नहीं कर सकतीं। पीठ ने कहा , ‘‘ हम मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की समस्या से निबटने के लिये कानून बनाने , संशोधन करने अथवा कोई कानून नहीं बनाने के लिए बहुमत वाली सरकार का इंतजार नहीं करेंगे।

’’ संविधान पीठ ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब कुछ गिरिजाघरों और उत्कल क्रिश्चयन एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि धारा 377 में संशोधन करने या इसे बरकरार रखने के बारे में फैसला करना विधायिका का काम है। इस पर पीठ ने कहा , ‘‘ जिस क्षण हम मौलिक अधिकारों के हनन के बारे में आश्वस्त हो गये , तो ये मौलिक अधिकार अदालत को यह अधिकार देते हैं कि ऐसे कानून को निरस्त किया जाये। ’’

श्याम दीवान ने ‘‘ लैंगिक रूझान ’’ शब्द का भी हवाला दिया और कहा कि नागरिकों के समता के अधिकार से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में प्रयुक्त् ‘ सेक्स ’ शब्द को अंतरपरिवर्तनीय के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता। उन्होंने दलील दी कि लैंगिक रूझान सेक्स शब्द से भिन्न है क्योंकि एलजीबीटीक्यू से इतर भी अनेक तरह के लैंगिक रूझान हैं। इससे पहले , सरकार ने धारा 377 की संवैधानिक वैधता का मामला शीर्ष अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था। सरकार ने कहा था कि न्यायालय को समलैंगिक विवाह , गोद लेना और दूसरे नागरिक अधिकारों पर विचार नहीं करना चाहिए। केन्द्र के रूख का संज्ञान लेते हुये न्यायालय ने कहा था कि वह इन मुद्दों पर विचार नहीं कर रहा है। न्यायालय ने कहा था कि वह सिर्फ परस्पर सहमति से दो वयस्कों के यौन रिश्तों के संबंध में कानून की वैधता परखेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seven + 3 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।