नई दिल्ली : पत्रकारिता व साहित्य दोनों के बीच एक अटूट रिश्ता है। यह बात मुख्य वक्ता के तौर पर वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की चेयरपर्सन श्रीमती किरण चोपड़ा ने गुरुवार को साहित्य अकादमी के तत्वावधान में साहित्य व पत्रकारिता पर आयोजित परिसंवाद के दौरान कहीं। उन्होंने पत्रकारिता के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बदलते दौर में पत्रकारिता का रूप भी बदला है। एक वक्त ऐसा था जब पत्रकारिता देश की आजादी के लिए शुरू हुई थी।
उन्होंने कहा कि जब लालाजी जेल में थे तो उनके बेटे रमेश जी उन्हें संदेश छोटे-छोटे कागजों पर लिख कर भेजते थे। हालांकि अब पत्रकारिता बदल रही है। पहले पत्रकारिता वकीलों, बुद्धिजीवियों के पास होती थी। अब पैसे वालों के पास हो गई है। पत्रकारिता पहले मिशन था अब यह व्यवसाय हो गया है। उन्होंने कहा कि पंजाब केसरी मिशन लेकर आगे बढ़ा , हमेशा से निर्भय होकर पत्रकारिता की। किसी भी समाचार को लेकर समझौता नहीं किया।
जिसका खामियाजा हमारे परिवार को भी भुगतना पड़ा। श्रीमति किरण चोपड़ा ने कहा कि जब देश में आपातकाल लगा तो उस दौरान की सरकार ने कहा था कि आप न्यूज न लिखे। लेकिन लालाजी नहीं माने तो हमारे ऑफिस की बिजली काट दी गई। लेकिन फिर भी लालाजी ने हिम्मत व सच्चाई नहीं छोड़ी और ट्रेक्टर के माध्यम से पंजाब केसरी समाचार पत्र निकाला गया। इसके बाद भी लालाजी ने निडर व सच्चाई नहीं छोड़ी और अपनी पत्रकारिता जारी रखी।
लालाजी के शहीद होने पर भी उनके पुत्र ने एक आर्टिकल लिखा था कि इतने बुजुर्ग आदमी को मार दिया। उन्होंने भी कलम उठाई। 1984 में रमेश जी के शहीद होने के बाद मेरे पति ने भी कलम उठाई और लिखा कि सर कट जाए पर सर झुकेगा नहीं कभी। हालांकि उनके ऊपर कई बार अटैक हुए लेकिन उन्होंने अपनी कलम नहीं रोकी।