तीस हजारी अदालत में शनिवार को हुए गोलीकांड के मुद्दे पर आज दिन में दिल्ली हाईकोर्ट के कुछ जज और दिल्ली पुलिस आयुक्त के बीच विशेष बैठक होने की संभावना है। हालांकि इस बैठक को लेकर दिल्ली पुलिस और न ही दिल्ली हाईकोर्ट से कोई बोलने को तैयार है। इस खास बैठक का मकसद मामले को आगे न बढ़ने देने की कवायद करना होगा। आगे की कानूनी कार्यवाही में किन-किन बिंदुओं को प्रमुखता से देखना है? इन सवालों का जवाब भी इसी बैठक में तलाशने की कोशिश की जाएगी।
उधर दोनों ही तरफ से शनिवार को पुलिस ने क्रॉस एफआईआर दर्ज कर ली है। दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा गठित क्राइम ब्रांच की एसआईटी, सीएफएसएल रिपोर्ट और मौके पर लगे सीसीटीवी में कैद फुटेज जांच में अहम भूमिका निभाएंगे। जांच के लिए गठित एसआईटी के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर रविवार को कहा, “दरअसल पूरा घटनाक्रम बेहद पेचीदा है। जांच करना भी आसान नहीं होगा। जांच में जरा सी चूक फिर कोई नया विवाद खड़ा कर सकती है। लिहाजा ऐसे में जांच वैज्ञानिक तथ्यों, सीसीटीवी फुटेज, चश्मदीदों के बयानों के आधार पर ही किया जाना बेहतर होगा।”
एसआईटी इस बात से भी इंकार नहीं कर रही है कि, “घटना वाले वक्त कोर्ट लॉकअप में बंद कई विचाराधीन कैदियों को भी गवाह बनाया जाए। वजह, वकीलों द्वारा की गई मारपीट, आगजनी के वे भी भुक्तभोगी हैं। वकीलों ने जब वाहनों को आग में फूंकना शुरू किया था तो जलते हुए टायरों का धुंआ कैदी लॉकअप में भी पहुंच गया। लॉकअप में कैदियों की संख्या पहले से ही ज्यादा होती है। जबकि उसके भीतर जगह बेहद कम होती है। ऐसे में जहरीले धुंए से कैदियों का दम घुटने लगा था।”
हालांकि लॉकअप की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों ने जैसे ही देखा कि लॉकअप के भीतर बंद कैदियों की जान को भी खतरा है, पुलिस ने मानव श्रंखला बनाकर उन सबको एक दूसरी जगह पर ले जाकर सुरक्षित किया। घटनास्थल पर मौजूद एक आला पुलिस अफसर ने रविवार को बताया, “अगर कैदियों को वक्त रहते लॉकअप से सुरक्षित न निकाल लिया होता, तो हालात बेकाबू हो सकते थे। मौके का फायदा उठाकर कैदी भाग भी सकते थे। या फिर अगर भीड़ और कैदी आमने-सामने आ जाते तो क्या कुछ हो सकता था?
इसकी कल्पना से ही रुह कांप जाती है। बात जहां पर भी पहुंचकर थमी वही सही है। साथ ही कोई कैदी धुंए के कारण बेहोश नहीं हुआ। किसी को भागने का मौका नहीं मिला, या फिर किसी कैदी ने भागने की कोशिश ही नहीं की, यही सहयोग बहुत रहा। वरना पुलिस को वकीलों से मोर्चा लेने के साथ-साथ कैदियों से भी दूसरा मोर्चा खोलना पड़ जाता।”