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तीस हजारी हिंसा : 10 दिन के लिए हड़ताल सस्पेंड

दिल्ली बार एसोसिएशन के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट इक्रांत शर्मा ने बताया कि हाईकोर्ट के निर्देश का सम्मान करते हुए इस हड़ताल को सस्पेंड किया गया है।

नई दिल्ली : दिल्ली की सभी जिला अदालतों में वकीलों की चल रही हड़ताल को 10 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया है। हाईकोर्ट के निर्देश का सम्मान करते हुए दिल्ली बार एसोसिएशन की कॉर्डिनेशन कमेटी ने यह निर्णय लिया है। दिल्ली बार एसोसिएशन के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट इक्रांत शर्मा ने बताया कि हाईकोर्ट के निर्देश का सम्मान करते हुए इस हड़ताल को सस्पेंड किया गया है। 
हाईकोर्ट ने कहा कि इससे न्यायपालिका पर फर्क पड़ रहा है, लोग परेशान हो रहे हैं इस पर शांतिपूर्ण तरीके से कोई निर्णय लें। उनके निर्देश के तहत ही हमने यह फैसला लिया है। हमें उम्मीद है कि 10 दिन में कोई न कोई उनकी मांगों पर हल निकाल लिया जाएगा। इस वजह से ही हड़ताल को सस्पेंड किया गया है। गौरतलब है कि अब वकीलों का गुस्सा भी पहले जैसा नहीं रह गया है। सभी जिला अदालतों में बेशक वकील जज के सामने पेश नहीं हो रहे थे लेकिन लोगों की अदालत परिसर में अब आवाजाही शुरू कर दी गई थी। लोगों की मदद को प्राॅक्सी काउंसिल उपलब्ध कराए गए थे। 
यही नहीं लोगों की मदद को अपने जूनियर वकीलों को भी चोरी-चोरी जज साहब के सामने भेजा जा रहा था। वहीं वकीलों ने कहीं लोगों का फूल देकर स्वागत किया तो कहीं वह पुलिस वालों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, भंडारा कर रहे थे और पुलिस वालों के साथ मिलकर कई जगह चाय की चुस्की भी ले रहे थे। उससे ही कयास लगाए जा रहे हैं कि हड़ताल अब नाममात्र की रह गई है। 
हालांकि पुलिस के साथ मामले को सुलझाने के लिए बैठक नहीं हो सकी, लेकिन अब दिल्ली बार एसोसिएशन ने आम लोगों को परेशानी में न डालते हुए 10 दिन के लिए हड़ताल को सस्पेंड करने का निर्णय लिया है। एसोसिएशन की कॉर्डिनेशन कमेटी का कहना है कि वह अपनी मांगों पर ही शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ेंगे। 10 दिनों में अगर कोई हल नहीं निकला तो उसके बाद कोई कदम उठाया जाएगा। फिलहाल आपसी सहयोग का रास्ता अपनाने की कोशिश रहेगी।
आपसी बातचीत से सुलझाने के निर्देश… बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दोनों पक्षों को निर्देश दिया कि वह इस मामले को बढ़ावा देने की जगह आपसी बातचीत से सुलझाएं। हाईकोर्ट ने वकीलों को सुझाव दिया है कि उन्हें एक के बाद एक याचिका लगाने की जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि आप सब कोर्ट अफसर हो। इस मामले को निपटाने में अपना सहयोग करें। रोहिणी कोर्ट के एडवोकेट सिलपेश चौधरी का कहना है कि दिल्ली बार एसोसिएशन की ओर से यह अच्छा निर्णय लिया गया है। आम लोग परेशान हो रहे थे। शांतिपूर्ण हल निकलना बेहतर रहेगा।
तीस हजारी मामलाः 42 बयान दर्ज, वायरल वीडियो होंगे सबूत… 
तीस हजारी कोर्ट में पुलिस व वकीलों के बीच हुए बवाल के मामले में पुलिस अब तक 42 लोगों के बयान दर्ज कर चुकी है। वहीं एक के बाद एक वायरल हो रहे वीडियो को जांच करने वाली स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) जांच का​ हिस्सा बना रही है। ये वीडियो जांच में अहम भूमिका साबित करेंगे। 
बता दें कि इन तीनों वीडियों में से एक में वकीलों द्वारा इलाके की डीसीपी को  घेरा हुआ दिख रहा है। जबकि दूसरी वीडियो में वकील घिरे हुए हैं, और तीसरे वीडियो में लॉकअप के पास आग लगाए जाने वाला वीडियो है। अधिकारियों का कहना है कि पूरे घटनाक्रम को समझने में ये वीडियो पुलिस की मदद करेंगे। फिलहाल सभी वीडियो को फोरेंसिक जांच के लिए भी भेज दिया गया है। 
जिससे ये यह साफ हो सके कि वायरल होने वाले तीनों वीडियो के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ तो नहीं की गई है। फिलहाल हर एंगल से पुलिस मामले की छानबीन में जुटी है। हर सबूत और गवाह को अहम माना जा रहा है। अभी मामले में कई और लोगों के बयान दर्ज होने बाकी हैं।
पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई वाली याचिका टली
 दिल्ली हाईकोर्ट ने तीस हजारी हिंसा मामले के विरोध में प्रदर्शन करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर सुनवाई को फरवरी तक टाल दिया है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी. हरिशंकर की बेंच ने इस मामले की सुनवाई 12 फरवरी 2020 तय की है। हाईकोर्ट बेंच ने इससे पहले सुनवाई करने से इनकार कर दिया। और वकीलों से कहा कि पुलिस के साथ समझौते के लिए अपने सक्षम अधिकारियों की मदद लें। 
बता दें कि 2 नवंबर को दिल्ली की तीस हजारी अदालत परिसर में वकीलों और पुलिस के बीच झड़प हुई थी। इस घटना के विरोध में पुलिसकर्मियों ने सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन किया था और परिवार सहित धरने पर बैठ गए थे। एक वकील राकेश कुमार लाकरा ने अदालत में जनहित याचिका दायर कर उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है, जिन्होंने मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन होने के बावजूद सोशल मीडिया पर बयान जारी किए। 
लाकरा ने याचिका में केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस, पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक, अरुणाचल प्रदेश के डीजीपी मधुर वर्मा, दिल्ली के डीसीपी असलम खान, एनआईए एसपी संजुक्ता पाराशर और आईपीएस मेघना यादव को पार्टी बनाया है। 
याचिका में इनके खिलाफ केंद्र सरकार को विभागीय कार्रवाई करने का निर्देश जारी करने की मांग की गई है। लाकरा ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त पर असलम खान के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया जो सोशल मीडिया पर लगातार बयानबाजी कर रहा था जबकि मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन था।
सुप्रीम कोर्ट में डाली याचिका
दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी दायर की गई है। इसमें मांग की गई कि विरोध-प्रदर्शन में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। वकील जीएस मणि ने याचिका दायर कर कहा है कि पुलिसकर्मियों का प्रदर्शन गैरकानूनी था। यह पुलिस बल (अधिकारों का प्रतिबंध) कानून की धारा 3 का उल्लंघन है। 
याचिका में पुलिस वालों द्वारा वकीलों को धमकाने पर भी चिंता जताई गई और वकीलों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया गया। याचिका में गलत मेसेज और वायरल वीडियो जारी करने वाले आईपीएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की गई है।
महिला अधिकारी पर हुए हमला का डीसीडब्ल्यू ने मांगा जवाब 
दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने शुक्रवार को पुलिस को नोटिस जारी कर उससे तीस हजारी अदालत परिसर में पिछले हफ्ते झड़प के दौरान एक महिला पुलिस अधिकारी पर कथित रूप से हुए हमले के मामले में की गई कार्रवाई का ब्यौरा मांगा। शनिवार को हिंसा में कम से कम 20 पुलिसकर्मी और कई वकील घायल हो गये थे। संयुक्त पुलिस आयुक्त (मध्यक्षेत्र) को भेजे नोटिस में डीसीडब्ल्यू ने कहा कि उसने सोशल मीडिया पर छाये वीडियो का स्वत: संज्ञान लिया है, जिसमें पुरुषों की हिंसक भीड़ एक महिला अधिकारी पर हमला करती नजर आ रही है। 
इस घटना के एक अन्य कथित वीडियो में यह अधिकारी वकीलों के एक समूह से हिंसा नहीं करने की गुजारिश करते नजर आ रही है, लेकिन समूह उनकी बात पर ध्यान नहीं देता है। आयोग ने नोटिस में कहा कि वीडियो में ऐसा दिख रहा है कि वह संभवत: भीड़ से हिंसा नहीं करने की दरख्वास्त कर रही हैं, लेकिन लोग उन पर हमला जारी रखे हुए हैं। उनका बर्ताव शर्मनाक है और उससे कड़ाई से निपटने की जरूरत है। 
आयोग ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है और इससे राजधानी में कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है कि महिला पुलिस अधिकारी तक सुरक्षित नहीं है। डीसीडब्ल्यू ने जानना चाहा कि इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई है या नहीं और यदि दर्ज की गई है तो उसकी प्रति दी जाए। आयोग ने पूछा कि यदि प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है तो क्यों नहीं की गई है। उसने यह भी पूछा कि आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी हुई है या नहीं। उसने 13 नवंबर तक कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है।
वकालत कर रहे पूर्व डीसीपी से मांगी सफाई
साकेत कोर्ट में दिल्ली पुलिस से सवोनिवृत्त होकर वकालत कर रहे पूर्व डीसीपी के चैंबर पर पोस्टर लगाकर सफाई मांगी है। पोस्टर के माध्यम से उनसे यह साफ करने को कहा गया है कि वह वकील है या पुलिस अधिकारी। पुलिस-वकील के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद मान-सम्मान के लिए चल रही लड़ाई की वजह से रिटायर्ड डीसीपी एलएन राव से साकेत कोर्ट के वकीलों ने सफाई मांगी है। बता दें कि एलएन राव रिटायर्ड होने के बाद वकालत के पेशे में आ गए। 
उनका अब साकेत कोर्ट में चैंबर भी है। जब तीस हजारी का यह मामला हुआ तो उसके बाद राव टीवी चैनल्स पर आयोजित डिबेट्स में पुलिस का पक्ष लेते हुए नजर आए। जिससे वकील नाराज हैं और उन्होंने उन पर कड़ी आपत्ति भी जताई है। इसलिए ही वकीलों ने उनसे सीधे बातचीत न कर उनके चैंबर के बाहर पोस्टर लगाकर यह सवाल दागा है। पोस्टर में सवाल किया गया है कि वह यह साफ करें कि वह वकील हैं या फिर पुलिस अधिकारी। 
साकेत कोर्ट के वकीलों का कहना है कि उनकी ओर से दिल्ली पुलिस का पक्ष लेने से वह आहत हुए हैं। क्योंकि वह बात नहीं बढ़ाना चाहते इसलिए ही इस माध्यम से उनसे जवाब मांगते हुए उन्हें जताया गया है। वकील संगठन का कहना है कि वह वकालत कर रहे हैं या फिर अभी भी पुलिस वाले हैं।

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